________________
४७.
चवते भी हैं, सरीखा भी रहते हैं ) ? या. निरुवचया निरवचया ( उपजते भी नहीं और चवते भी नहीं, अवस्थित रहते हैं.) १, हे गौतम ! जीव सोवचया नहीं सावचया नहीं, सोवचया सावचया नहीं किन्तु निरुवचया निरवचया हैं।
नारकी आदि १६ दण्डक में भांगा पावे ४ । पांच स्थावर में भांगा पावे १ (सोवचया सावचया )। सिद्ध भगवान् में भांगा.पावे.२-पहला और चौथा।
. २-स्थिति आसरी समञ्चय जीव और: ५ स्थावर की स्थिति सबद्धा ( सर्व काल )। १६ दण्डक में भांगा पावे ४, प्रथमः तीन मांगों की स्थिति जघन्य.. एक समय की, उत्कृष्ट
आवलिका के असंख्यातवें भाग की है । चौथे मांगे की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट अपने अपने विरहकाल जितनी है । सिद्ध भगवान् में भांगा पावे दो-पहला, चौथा । पहले. भांगे की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट ८ समय की... है। चौथे भांगे की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट ६.. मास की है....... ........
३-चड्ढमाण में भांगा पावे २-पहला, तीसरा ( सोवचया, सोवचया सावचया)। हायमान में भांगा पावे २-दूसराः
और तीसरा ( सावचया, सोवचया सावचया) | अवडिया में भांगा पावे २-तीसरा और चौथा ( सोवचया सावचया, निरुः वचया निरवचया) ।
.
.
.,