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कामक
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परिमाण वाला ) रात्रि दिवस उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होवेंगे ? नष्ट हुए, नष्ट होते हैं और नष्ट होवेंगे ? भगवान् ने उत्तर दिया कि - हाँ, ग्रार्यो ! उत्पन्न हुए यावत् नष्ट होवेंगे । श्रहो भगवान् ! इसका क्या कारण है ? हे आर्यो ! पुरुषादानीय ( पुरुषों में माननीय ) पार्श्व नाथ अरिहन्त ने लोक को शाश्वत, अनादि, अनन्त कहा है । यह लोक नीचे चौड़ा, बीच में संकड़ा और ऊपर विशाल है, असंख्य योजन का लम्बा चौड़ा है, अलोक से आवृत्त ( घिरा हुआ ) है । ऐसे सर्व लोक में अनन्ता (साधारण) परित्ता ( प्रत्येक ) जीवों ने जन्म मरण किये, करते हैं, करेंगे । उन जीवों की अपेक्षा संख्याता लोक में अनन्ता परित्ता रात्रिदिवस उत्पन्न हुए यावत् विनष्ट होवेंगे । जहाँ तक जीव पुगलों की गति ( गमन ) है वहाँ तक लोक है और जहाँ तक लोक है वहीं तक जीव पुलों की गति ( गमन ) होती है ।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ये वचन सुन कर उन स्थविर मुनियों ने भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके चार जाम ( चार महाव्रत ) धर्म से पंच जाम ( पांच महाव्रत ) रूप धर्म समतिक्रमण (प्रतिक्रमण सहित ) अङ्गीकार
सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमरस य पच्छिमरस य जिरणस्स । : मज्झिमाणं जिणाणं, कारणजाए पडिक्कमणं || अर्थ- प्रथम तीर्थकर और अन्तिम तीर्थङ्कर के साधुओं को प्रतिदिन सुबह शाम दोनों वक्त और पाक्षिक चौमासिक सांवत्सरिक प्रति