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________________ कामक ५० " परिमाण वाला ) रात्रि दिवस उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होवेंगे ? नष्ट हुए, नष्ट होते हैं और नष्ट होवेंगे ? भगवान् ने उत्तर दिया कि - हाँ, ग्रार्यो ! उत्पन्न हुए यावत् नष्ट होवेंगे । श्रहो भगवान् ! इसका क्या कारण है ? हे आर्यो ! पुरुषादानीय ( पुरुषों में माननीय ) पार्श्व नाथ अरिहन्त ने लोक को शाश्वत, अनादि, अनन्त कहा है । यह लोक नीचे चौड़ा, बीच में संकड़ा और ऊपर विशाल है, असंख्य योजन का लम्बा चौड़ा है, अलोक से आवृत्त ( घिरा हुआ ) है । ऐसे सर्व लोक में अनन्ता (साधारण) परित्ता ( प्रत्येक ) जीवों ने जन्म मरण किये, करते हैं, करेंगे । उन जीवों की अपेक्षा संख्याता लोक में अनन्ता परित्ता रात्रिदिवस उत्पन्न हुए यावत् विनष्ट होवेंगे । जहाँ तक जीव पुगलों की गति ( गमन ) है वहाँ तक लोक है और जहाँ तक लोक है वहीं तक जीव पुलों की गति ( गमन ) होती है । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ये वचन सुन कर उन स्थविर मुनियों ने भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके चार जाम ( चार महाव्रत ) धर्म से पंच जाम ( पांच महाव्रत ) रूप धर्म समतिक्रमण (प्रतिक्रमण सहित ) अङ्गीकार सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमरस य पच्छिमरस य जिरणस्स । : मज्झिमाणं जिणाणं, कारणजाए पडिक्कमणं || अर्थ- प्रथम तीर्थकर और अन्तिम तीर्थङ्कर के साधुओं को प्रतिदिन सुबह शाम दोनों वक्त और पाक्षिक चौमासिक सांवत्सरिक प्रति
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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