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________________ ४५ समय की, उत्कृष्ट अपने अपने विरह काल से दुगुनी है । पांच स्थावर में भांगा पावे ३, जिसमें तीनों ही भांगों की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट आवलिका के श्रसंख्यातवें भाग की हैं । सिद्ध भगवान् में भांगा पावे २ - जिसमें वड्ढमाण की स्थिति जवन्य एक समय की, उत्कृष्ट व समय की, अडिया की स्थिति जवन्य एक समय की, उत्कृष्ट छह महीनों की हैं। सेव संते ! सेवं भंते !! * अवट्टिया की उत्कृष्ट स्थिति - समुच्चय नरक की २४ मुहूर्त की . 1 पहली नरक की ४८ मुहूर्त्त की, दूसरी नरक की १४ दिन रात की, तीसरी नरक की १ मास की, चौथी नरक की २ मास की, पांचवीं नरक की ४ मास की, छठी नरक की मास की, सातवीं नरक की १२ मास की । समुच्चय देवता, तिर्यंच, मनुष्य की २४-२४ मुहूर्त्त की - भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, पहले दूसरे देवलोक की ओर सम्मूर्छिम मनुष्य की ४८ मुहूर्त्त की तीन विकलेन्द्रिय की और असन्नी तिर्यञ्च पञ्चेंद्रिय की २ अन्तर्मुहूर्त्त की, सन्नी तिर्यञ्च पञ्चेंद्रिय और सन्नी मनुष्य की २४ मुहूर्त्त की, तीसरे देवलोक की १८ दिन रात ४० मुहूर्त्त की, चौथे देवलोक की २४ दिन रात २० मुहूर्त्त की पांचवें देवलोक की ४५ दिन रात की, छठे देवलोक की ६० दिन रात की, सातवें देवलोक की १६० दिन रात की, आठवें देवलोक की २०० दिन रात की, नवमें दसवें देवलोक की संख्याता मास की, ग्यारहवें बारहवें देवलोक की संख्याता वर्षों की, नव *
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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