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________________ ४३ तब नियंठिपुत्र अनगार ने जवाब दिया कि हे नारदपुत्र ! १ सब से थोड़ा भाव से अप्रदेशी, २ उससे काल से श्रप्रदेशी असंख्यात गुणा, ३ उससे द्रव्य से प्रदेशी असंख्यात गुणा, ४ उससे क्षेत्र से प्रदेशी असंख्यात गुणा, ५ उससे क्षेत्र से प्रदेशी असंख्यात गुणा, ६ उससे द्रव्य से सप्रदेशी विसेसा'हिया ( विशेषाधिक ), ७ उससे काल से सप्रदेशी विसेसाहिया, ८ उससे भाव से सप्रदेशी विसेसाहिया । इस अर्थ को सुनकर नारदपुत्र अनगार ने नियंरिपुत्र धन'गार को वन्दना नमस्कार किया और अपने निज के द्वारा कहे * सब से थोड़े भाव से अप्रदेशी- जैसे एक गुण काला नीला आदि । २-उससे काल से प्रदेशी असा गुणा-जैसे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल । ३-उससे उच्च से मवेशी असंख्यात गुणाजैसे सब परमाणु पुद्गल । उससे क्षेत्र से जैसे एक एक आकाश प्रदेश अवगाई पुद्गल प्रदेशी श्रसंख्यातगुणा | उसे क्षेत्र से सप्रदेशी असंख्यातगुणा-जैसे दो आकाश प्रदेश श्रवगाई हृप, तीन श्राकाश प्रदेश 'अवगाहे हुए यावत् असंख्यात श्राकाश प्रदेश घवगाहे हुए पुद्गल । ६ उससे द्रव्य से सप्रदेशी विशेपाहिया-जैसे दो प्रदेशी स्कंध, तीन प्रदेशी स्कन्ध, यावत् अनन्त प्रदेशी रकत्व । ७ उससे काल से समदेशी विशे • दिया, जैसे-दो समय तीन समय यावत् श्रसंख्यात समय की 'वाले पुद्गल उससे भाव से संप्रदेशी विशेपाहिया जैसे- दो 'काले, तीन गुण काल यावत अनन्त गुण काले आदि ग :
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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