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________________ नारद पुत्र अनगार ने जवाब दिया कि हे आर्य ! मेरी धारणा प्रमाणे - सब पुद्गल सअड्डा समझा सपएसा है, किन्तु अणड्ढा असज्झा अपएसा नहीं है।. ...... २-नियंठिपुत्र अनगार ने पूछा कि हे आर्य ! आपकी धारणा प्रमाणे क्या सब पुद्गल द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा सअड्ढा समझा सपएसा है ? ... नारदपुत्र ने जवाब दिया कि हे श्रार्थ ! सत्र पुद्गल द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा साड्ढा समझा सपएसा हैं। . ३-नियंठिपुत्र अनगार ने पूछा कि हे आर्य ! यदि सब पुद्गल द्रव्य क्षेत्र काल भावं से सअड्ढा समझा सपएसा हैं तो आपके मतानुसार एक परमाणु पुद्गल, एक प्रदेशावगाढ पुद्गल, एक समय की स्थिति वाला पुद्गल . एक गुण काला पुद्गल सअड्ढा समझा सपएसा होने चाहिए, अणड्ढा अमज्झा अपएसा नहीं होने चाहिए। यदि आपकी धारणानुसार इस तरह न होवे तो आपका कहना मिथ्या होगा। . नारदपुत्र अनगार ने नियंठिपुत्र अनगार से कहा कि हे देवानुप्रिय ! मैं इस अर्थ को नहीं जानता हूँ, नहीं देखता हूँ। इस अर्थ को कहने में यदि आपको ग्लानि ( कष्ट ) न होती हो तो आप फरमावें। इसका अर्थ मैं आपके पास से सुनना चाहता है, धारण करना चाहता हूँ । : ................ ... तब नियंठिपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से कहा कि
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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