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________________ ४० स्थान आयु) असंख्यातगुणा, ३. उससे दव्वद्वाणा उप ( द्रव्य स्थान आयु) असंख्यातगुणा, ४ उससे भावद्वाणाउए ( भाव स्थान आयु) असंख्यात गुणा 1. सेवं भंते ! .. सेवं भंते !! ( थोकड़ा नं० ४२ ) श्री भगवतीजी सूत्र के पांचवें शतक के आठवें उद्देशे में 'सप्रदेशी अप्रदेशी' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं । १- श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के शिष्यं नियंठिपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनवार से पूछा कि हे कार्य ! आपकी धारणा प्रमाणे क्या सब पुद्गल सअड्डा समझा सपएसा है श्रथवा श्रखड्डा श्रमज्या अपएसा है ? वही अवगाहना लम्बे समय तक ज्यों की त्यों रही है । इसलिए क्षेत्र की अपेक्षा अवगाहना का काल असंख्यात गुणा है । .. वही सौ प्रदेशी स्कन्ध पांच प्रदेशी अवगाहना को छोड़ कर कहीं चार प्रदेशी अवगाहना से और कहीं कम ज्यादा अवगाहना से बैठता गया तो इससे उसकी अवगाहना का पलटा तो हो गया किन्तु द्रव्य का पलटा नहीं हुआ । वही द्रव्य लम्बे काल तक रहा । इसलिये अवगाहना से द्रव्य का काल असंख्यातगुणा है ।. वही सौ प्रदेशी स्कन्ध वर्ण की अपेक्षा दस गुण काला था। अब चाहे वह पचास प्रदेश या कम ज्यादा द्रव्य वाला हो गया किन्तु दस गुण काला ज्यों का त्यों रहा तो उसके द्रव्य का तो पल्टा हो गया किन्तु दस गुणकाला भाव ज्यों का त्यों बना रहा । इसलिए द्रव्य से भाव का काल असंख्यातगुणा है ।
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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