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________________ ... ... ... . १३-कपमान अपमान का अन्तर द्वार- एक आकाश प्रदेश ओघाया यावत् असंख्यात अाकांश प्रदेश ओघाया तक कंपमान का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्याता काल का है। अकम्पमान का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का है। . ... १४-वर्णादिक का अन्तर द्वार-वर्ण गन्ध रस स्पर्श का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्याता काल का है । . . : १५--सूक्ष्म बादर का अन्तर द्वार-सूक्ष्म बादर का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्याता काल का है। . . १६-शब्दपने अशब्दपने परिणम्या का अन्तर द्वारशब्दपने परिणम्या का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्याता काल का है। अशब्दपने परिणम्या का अन्तर जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट श्रावलिका के असंख्यातवें भाग का है। - १७-अल्पबहुत्व द्वार- सब से थोड़ा खेत्तट्ठाणाउए (क्षेत्र स्थान प्रायु ), २ उससे ओगाहणट्ठाणाउए ( अवगाहना के क्षेत्र स्थान आयु अर्थात् क्षेत्र का काल सब से थोड़ा है, उससे अवगाहना स्थान आयु अर्थात् अवगाहना का काल असंख्यातगुणा है। इसका कारण यह है कि कल्पना कीजिये कि एक सौ प्रदेशी स्कन्ध - एक पाँच प्रदेशी आकाश प्रदेश पर पाँच प्रदेशी अवगाहना से बैठा है.। .. वहां से उठ कर वह दूसरे स्थान पर बैठ गया। इस तरह वह स्कन्ध उसी अवगाहना से अनेक जगह बैठता गया तो इस प्रकार उसका क्षेत्र तो पलटता (बदलता ) गया है किन्तु अवगाहना नहीं पलटी है । - team T001
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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