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: (थोकड़ा नं ४१.). .. श्री भगवतीजी सूत्र के पांचवें शतक के सातवें उद्देशे में 'कम्पमान' का थोकड़ा चलता है सो कहते
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.... १ एयति वेयति द्वार, २ खड्गधारा द्वार, ३ अग्निशिखा दार, ४ पुष्करावर्त मेघ द्वार, ५ सअड्डे समझ संपएसे उदाहु प्रणड्ड अमज्झे अपएसे द्वार, ६ फुसमाण द्वार, ७ स्थिति द्वार
कम्पमान अकम्पमान का स्थिति द्वार, ४ वर्ण गन्ध रस स्पर्श का स्थिति द्वार, १० सूक्ष्म बादरं का स्थिति द्वार, ११ राब्दपने अशब्दपने परिणमने का स्थिति द्वार, १२ परमाणु का अन्तर द्वार, १३ कम्पमान अकम्पमान का अन्तर द्वार, १४
दिक का अन्तर द्वार, १५ सूक्ष्म बादर का अन्तर द्वार, १६ शब्दपने अशब्दपले परिणभ्या का अन्तर द्वार, १७ अल्प बहुत्व दार।
१-अहो भगवान् ! क्या परमाणुपुद्गल कंपे, विशेष कंपे, गावत् उस उस रूप से परिणमे ? हे गौतम ! सिय (कदाचित्.:) कम्पे, विशेष करपे यावत् उस उस रूप से परिणमे, सियः नहीं कम्पे यावत् नहीं परिणमे । परमाणु में मांगा पावे दो-१ सियं कम्पे, २ सिय नहीं करपे। दो प्रदेशी खंध में मांगा पावे तीन१. सिय कंपे, २-सिय नहीं कंपे, ३. देश कंपे देश नहीं कम्पे । तीन प्रदेशी खंध में भांगा पावे पांच-१ सिय कम्पे, २. सियं