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________________ ८॥ सागर ३ पल है । लान्तक इन्द्र की तीनों परखदा में क्रम -से २०००, ४००० और ६००० देव हैं। इनकी स्थिति क्रम से १२ सागर ७ पल, १२ सागर ६ पल और १२ सागर ५ पल है। महाशुक्र इन्द्र की तीनों परखदा में क्रम से १०००, २००० और ४००० देव हैं। इन देवों की स्थिति १॥ सागर ५ पल, १५॥ सागर ४ पल और १५|| सागर ३ पल है। सहस्रार इंद्र की तीनों परखदा में क्रम से ५००, १००० और २००० देव हैं। इनकी स्थिति १७॥ सागर ७ पल, १७॥ सागर ६ पल, और १७॥ सागर ५ पल है । प्राणत इन्द्र की तीनों परखदा में क्रम से २५०, ५०० और १०००. देव हैं। इनकी स्थिति १६ सागर ५ पल, १६ सागर ४ पल और १६ सागर ३ पल है । - अच्युतेन्द्र की तीनों परखदा में क्रम से १२५, २५० और ५०० देव हैं। इनकी स्थिति २१ सागर ७ पल, २१ सागर ६ पल और २१ सागर ५ पल है । ... . सेवं भंते !. . सेवं भंते !! . ® नवमा आणत देवलोक और दसवां प्राणत देवलोक दोनों का एक ही इन्द्र प्राणतेन्द्र होता है। . . . . . . . . X ग्यारहवाँ आरण देवलोक और बारहवाँ अच्युत देवलोक, इन दोनों देवलोकों का एक ही इन्द्र अच्युतेन्द्र होता है।.. ... .. नव वेयक और पांच अनुत्तर विमानों में तीन परखदा नहीं होती । वे सब देव समान ऋद्धि वाले होते हैं। उनमें छोटे बड़े का भाव .... और स्वामी सेवक का भाव नहीं होता है। इनमें इन्द्र नहीं होता है। ये सब अहमिन्द्र (मैं स्वयं ही इन्द्र हूँ) होते हैं। चि अनुन्त होते हैं। उनमन्द्र नहीं है
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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