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हैं -- सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु, सुबल । सोम और यम की स्थिति दो पल्योपम में पल का तीसरा भाग ऊणी है । वैश्रमण की स्थिति दो पल्योपम की है। वरुण की स्थिति दो पल्योपम और पल का तीसरा भाग अधिक है । मेरु पर्वत से उत्तर दिशा में होने वाले सब काम इनके जाणपणा में होते हैं । सब लोकपालों के पुत्रवत् ( पुत्र स्थानीय ); आज्ञाकारी देवों की स्थिति १ पल्योपम की है । शेष सारा अधिकार पूर्ववत् जान लेना चाहिए ।
सेवं भंते !
सेवं भंते !!
( थोकड़ा नं० ३६ )
श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे उद्देशे में 'अधिपति देवों' का धोकड़ा कहते हैं
शतक के आठवें चलता है सो
१ - हो भगवान् ! असुरकुमार आदि भवनपति देवों में कितने अधिपति हैं ? हे गौतम! असुरकुमार आदि दस भवनपतियों की एक एक जाति में १० - १० अधिपति हैं, एक एक जाति में दो दो इन्द्र हैं । एक एक इन्द्र के चार चार लोकपाल हैं ।
२- श्रहो भगवान् ! वाणव्यन्तर देवों में कितने अधिपति हैं ? हे गौतम! वाणव्यन्तरं देवों में यावत् गन्धर्व तक दो दो इन्द्र हैं और वे ही अधिपति हैं। वाणव्यन्तर देवों में लोकपाल नहीं होते।