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द्वीप प्रमाण है । उपलेखका ( चबूतरा ) १६००० - १६००० योजन है। सत्र के ३४१-३४१ महल - भूमकारूप हैं ।
शक्रेन्द्रजी के लोकपाल सोम और यम की स्थिति एक पल्योपम और पल्योपम के तीसरे भाग अधिक की है। वरुण की स्थिति देश ऊणी ( कुछ कम ) दो पल्योपम की हैं। वैश्रमण की स्थिति दो पल्योपम की है। सब लोकपालों के पुत्रवत् ( पुत्रस्थानीय), आज्ञाकारी देवों की स्थिति १ पल्योपम की है।
सोम लोकपाल के आज्ञाकारी देव देवियों के नाम-सोमकायिक, सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमार, विद्युत्कुमारी, अग्निकुमार, अग्निकुमारी, वायुकुमार, वायुकुमारी, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा । पुत्रवत् देवों के नाम- मंगल, विकोलिक, लोहिताक्ष, शनिश्चर, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति, राहु |
यम लोकपाल के आज्ञाकारी देव देवियों के नाम-यमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमार, असुरकुमारी, कन्दर्प, नरकपाल ( परमाधार्मिक ) । पुत्रवत् देवों के नाम — अम्ब, अम्बरिस, श्याम, शबल, रुदे ( रुद्र ), उवरुद्दे
* बीच में मूल प्रासाद है उसके चारों तरफ चार महल मूल से आधा लम्बा चौड़ा ऊँचा है । चारों के चौतरफ १६ महल उनसे आवे, उन सोलह के चौतरफ ६४ महल उनसे आवे, उन चौसठ महल के चौतरफ २५६ महल उनसे आधे = १+४+१६+ ६४ + २५६= ३४१ महल का भूमका ऊपर लिखे अनुसार है।
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