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है, यह इन दोनों के बीच में एक बड़ा नगर है परन्तु वह ऐसा नहीं जानता कि यह तो मैंने स्वयं वैक्रिय किया है।
इस प्रकार इन तीनों ही अलावों में विपरीत दर्शन से तथाभाव ( सच्ची बात ) से नहीं जानता, नहीं देखता है किन्तु अन्यथा भाव से जानता देखता है। __४-५-६-चौथा पाँचवां छठा अलावा समदृष्टि का कहना चाहिए । इन तीनों ही अलावों में समदृष्टि अवधिज्ञानी चैक्रिय लब्धिवन्त भावितात्मा अनगार सम्यगदर्शन से तथाभाव (जैसा है वैसा ही ) जानता देखता है, अन्यथाभाव (विपरीत) नहीं जानता, नहीं देखता है। ..
७-अहो भगवान् ! क्या समदृष्टि अवधिज्ञानी वैक्रिय लब्धिवन्त भावितात्मा अनगार बाहर के पुद्गलों को लिये विना ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश के रूप वैक्रिय कर सकता है. ? हे गौतम ! णो इणढे समढे ( ऐसा नहीं कर सकता )।
- ८-अहो भगवान् ! क्या समदृष्टि अवधिज्ञानी वैक्रिय - लब्धिवन्त भावितात्मा अनगार बाहर के पुद्गलों को लेकर
ग्राम नगर यावत् सन्निवेश के रूप वैक्रिय कर सकता है ? हाँ, गौतम ! कर सकता है, सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भरने की
शक्ति है (विषय अासरी ), किन्तु ऐसा कभी किया नहीं, ___करते नहीं और करेंगे नहीं। .::. . . . . . .
सेवं भंते ! :: : : सेवं भंते !!... : :