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१- अहो भगवान् ! क्षा राजगृह नगर में रहा हुआ भावितात्मा अनगार मायी मिध्यादृष्टि वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि विभंगज्ञान लब्धि से वाणारसी नगरी वैक्रिय कर राजगृही नगरी का रूप जानता देखता है ? हाँ, गौतम | जानता देखता है । हो भगवान् ! क्या वह तथाभाव (जैसा है वैसा ) से जानता देखता है या अन्यथा भाव (विपरीत) से जानता देखता है ?
गौतम ! वह तथाभाव से नहीं जानता नहीं देखता किन्तु अन्यथा भाव से जानता देखता है। अहो भगवान् 1 इसका क्या कारण ? हे गौतम ! उसको विभंगज्ञान विपरीत दर्शन होने से वह अन्यथाभाव से जानता देखता है ।
२ - श्रहो भगवान् ! क्या वाणारसी में रहा हुआ मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार राजगृही नगरी वैक्रिय कर वाणारसी का रूप जानता देखता है ? हाँ, गौतम 1 जानता देखता है यावत् उसको विभंगज्ञान विपरीतदर्शन होने से वह अन्यथाभाव से जानता देखता है । ( वह इस तरह जानता कि मैं राजगृही में रहा हुआ हूँ और वाणारसी वैक्रिय कर वाणारसी का रूप जानता देखता हूँ ) ।
३- श्रहो भगवान् | क्या मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार राजगृही और वाणारसी के बीच में एक बड़ा नगर वैक्रिय कर उसका रूप जानता व देखता है ? हाँ, गौतम ! वह इस तरह जानता देखता है कि यह राजगृही है यह वाणारसी
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