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________________ १८ वभार पर्वत में प्रवेश करके समपर्वत को विषम और विषम पर्वत को सम कर सकते हैं। .५-अहो भगवान् ! मायी (प्रमादी ) साधु वैक्रिय करता है अथवा अमायी (अप्रमादी ) साधु वैक्रिय करता है ? हे गौतम ! मायी (प्रमादी.) साधु वैक्रिय करता है किन्तु अमायी नहीं करता है । अहो भगवान् ! इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! मायी (प्रमादी ) साधु सरस आहार करके वमन करता है, उसके हाड मज्जा (मीजा) तो बलवान होते हैं और लोही मांस पतले होते हैं। उस आहार के वादर पुद्गल हाड, मज्जा, केश, श्मश्रु, रोम, नख, लोही, शुक्रादिपने तथा इन्द्रियांपने (श्रोत्रेन्द्रिय जाव स्पर्शेन्द्रियपने ) परिणमते हैं। अमायी (अप्रमादी ) साधु रूखा आहार करता है, वमन नहीं करता, उसके हाड मज्जा (मिजा) पतले होते हैं, लोही मांस जाड़े ( घनगाढ़े ) होते हैं। बादर पुद्गल उच्चार पासवण खेल सिंघाणादिपने परिणमते हैं। इस कारण से मायी (प्रमादी) साधु वैक्रिय करते हैं और अमायी (अप्रमादी ) साधु चैक्रिय नहीं करते हैं। ___ मायी ( प्रमादी ) साधु उस कार्य की श्रालोयणा किये बिना काल करता है ( मरता है ) इसलिए आराधक नहीं है
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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