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और श्रमायी आलोयणा करके काल करता है, इसलिए भाराधक है।. - सेवं भंते !
सेवं भंते !! .....: .............. (थोकड़ा नं. ३६). . . . . . . . - श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे शतक के पांचवें उद्देशे में 'अणगार वैक्रिय' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैंगाथा-इत्थी असी पड़ागा, जएणोवइए य होइ बोद्धन्वे ।
पल्हत्थिय पलियंके, अभियोग विकुचणा मायी ॥ १-अहो भगवान् ! लब्धिवंत भावितात्मा अनगार बाहर के पुद्गल लेकर अनेक स्त्री पुरुष हाथी घोड़ा सिंह व्याघ्र
आदि रूप यावत् शिविका (पालखी ), स्यन्दमाणी ( म्याना) का रूप, ढाल और तलवार वाले मनुष्य के रूप, एक जनेऊ, दो जनेऊ वाले मनुष्य के रूप, एक तरफ पलाठी ( पालखी मार कर बैठना), दोनों तरफ पलाठी, एक तरफ पयकासन, दोनों तरफ पर्यकासन इत्यादि रूप बनाकर आकाश में उड़ने में समर्थ हैं ? जुवती जुवाण के दृष्टान्त से, चक्र नाभि के दृष्टान्त .. पहले मायी होने के कारण वैक्रिय रूप किये थे, सरस आहार किया था किन्तु पीछे उस बात का पश्चात्ताप करने से वह अमायी हुआ। उस बात की ' आलोयणा तथा प्रतिक्रमण करने से वह आराधक है। ... . .
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