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अही भगवान् ! वायुकाय किस आकार का वैक्रिय करता है १ है गौतम ! वायुकाय पताका के आकार वैक्रिय करता है, ऊंची तथा नीची एक पताका करके अपनी ऋद्धि, कर्म, प्रयोग से अनेक योजन तक जाता है । अहो भगवान् ! वह वायुकाय है कि पताका है । हे गौतम ! वह वायुकाय है, पताका नहीं । इसी तरह बलाहक (बादल) अनेक स्त्री, पुरुष हाथी घोड़ा यावत् नाना रूप बना कर अनेक योजन तक परऋद्धि, परकर्म और परप्रयोग से जाता है । अहो भगवान् ! उसको बलाहक कहना कि स्त्री पुरुषादि कहना ? हे गौतम! उसे बलाहक कहना किन्तु स्त्री पुरुषादि नहीं कहना |
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३- अहो भगवान् ! मरते समय जीव में कौनसी लेश्या होती है ? हे गौतम ! जिस जीव को जिस गति से उत्पन्न होना होता है, वह जीव उसी लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर काल करता है और उसी लेश्या में उत्पन्न होता है । इस तरह २४ दण्डक में से जिस दण्डक में जो जो लेश्या पावे सो कह देना ।
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४ - अहो भगवान् ! वैक्रिय लब्धिवन्त भावितात्मा अनगार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना वैभार पर्वत को उल्लंघ सकते हैं (एक बार उल्लंघ सकते हैं ) १ प्रलंघ सकते हैं ( चार चार उल्लंघ सकते हैं ) १ हे गौतम ! णो इट्टे समट्ठे । बाहर के पुद्गल लेकर उल्लंघ सकते हैं, प्रलंघ सकते हैं । इसी तरह राजगृही नगरी में जितने रूप हैं उतने वैक्रिय रूप बनाकर