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( थोकड़ा नं० ३५ )
श्री भगवतीजी सूत्र के तीसरे शतक के चौथे उद्देशे में अवधिज्ञान की विचित्रता आदि का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
हो भगवान् ! क्या कोई अवधिज्ञानी भावितात्मा अनगार (साधु) वैक्रिय समुद्घात करके विमान में बैठ कर आकाश में जाते हुए देव को जानता देखता है ? हे गौतम ! ( १ ) कोई देव को देखता है किन्तु विमान को नहीं देखता, ( २ ) कोई विमान को देखता है किन्तु देव को नहीं देखता, ( ३ ) कोई देव को भी देखता है और विमान को भी देखता है, ( ४ ) कोई देव को भी नहीं देखता और विमान को भी नहीं देखता । इसतरह जैसे देव से ४ भांगे कहे गये हैं वैसे ही देवी से ४ भांगे, देव देवी से ४ भांगे, वृक्ष के अन्दर के भाग और बाहर के भाग से ४ भांगे, यहां तक चार चौमंगियाँ हुई मूल कन्द से ४ भांगे, मूल स्कन्ध से ४ भांगे, मूल त्वचा से ४ भांगे, मूल शाखा से ४ भांगे, मूल प्रवाल से ४ भांगे, मूल पत्र से ४ भांगे, मूल फूल से ४ भांगे, मूल फल से ४ भांगे, मूल बीज से ४ भांगे कह देना । ये मूल से ६ चौभङ्गियाँ हुई । कन्द-से- चौभङ्गी, स्कन्ध से ७, त्वचा से ६, शाखा से ५, प्रवाल से ४, पत्र से ३, फूल से २, फल बीज से १ चौभङ्गी, इस तरह ये सब ४६ चौभङ्गियाँ हुई ।