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और शक्रेन्द्रजी को अनिष्ट अप्रिय वचन कहे । उन अनिष्ट अप्रिय वचनों को सुन कर शक्रेन्द्रजी क्रोध में धमधमायमान हुए। चमरेन्द्रजी को मारने के लिए वज्र फेंका । चमरेन्द्रजी डर कर पीछे भागे । ध्यान में खड़े हुए भगवान् महावीर स्वामी के पैरों के बीच में आकर बैठे। फिर शक्रेन्द्रजी ने उपयोग लगा कर भगवान् को देखा और जाना कि चमरेन्द्र भगवान् का शरण लेकर यहाँ आया था । मेरा वज्र चमरेन्द्र का पीछा कर रहा है। इसलिये कहीं मेरे वज्र से भगवान् की आशा तना हो जाय ऐसा विचार कर शक्रेन्द्रजी उतावली गति से भगवान् के पास आये और भगवान् से चार अङ्गुल दूर रहते हुए वज्र को साहरा ( पीछा खींचा ) भगवान् को वन्दना नमस्कार कर अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। फिर उत्तर पूर्व दिशा के मध्य भाग ( ईशान कोण) में गये। वहाँ जाकर पृथ्वी पर तीन बार अपने डांवे पग को पटका और चमरेन्द्रजी से इस प्रकार कहा कि - हे चमर ! आज तू श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रभाव से बच गया है। अब मेरे से तुझको जरा भी भय नहीं है' ऐसा कह कर शक्रेन्द्रजी जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापिस चले गये ( पहले देवलोक में चले गये ) ।
चमरेन्द्रजी भी भगवान् के पैरों के बीच से निकल कर अपनी राजधानी में चले गये । फिर अपनी सब ऋद्धि परिवार साथ लेकर भगवान् के पास आये । भगवान् को वन्दना