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भोगते हैं किन्तु जबरदस्ती नहीं । अनन्ती अवसर्पिणी अनन्ती उत्सर्पिणी काल बीतता है तब किसी वक्त असुरकुमार देव पहले देवलोक में जाते हैं, तब लोक में अच्छेरा ( आश्चर्यकारक बात ) होता है। अरिहन्त ( केवली तीर्थकर ) अरिहन्त चैत्य
(छद्मस्थ अरिहन्त ) और भावितात्मा अनगार (साधु मुनिराज) ... इन तीनों में से किसी की भी नेसराय (शरण ) लेकर असुर
कुमार देव पहले देवलोक में गये, जाते हैं और जायेंगे। सर असुरकुमार देव नहीं जाते हैं किन्तु मोटी ऋद्धि वाले जाते हैं। अभी वर्तमान के चमरेन्द्रजी पहले देवलोक में गये थे। ... चमरेन्द्रजी का जीव पूर्व भव में इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य पर्वत की तलेटी में वेभेल सन्निवेश में पूरण नाम का गाथापति था । पूरण गाथापति ने 'दानामा' नाम की प्रव्रज्या ग्रहण करके १२ वर्ष तक तापसपना पाला। अन्त में संलेखना करके काल के समय काल करके चमरचना राजधानी में इन्द्रपने उत्पन्न हुआ। तत्काल उपयोग लगा कर अपने ऊपर शक्रेन्द्रजी को देखा। उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को दीक्षा लिये ११ वर्ष हुए थे। भगवान् सुसुमारपुर के अशोक वन खण्ड में ध्यान धर कर खड़े थे। चमरेन्द्रजी भगवान् के पास आये, वन्दना नमस्कार कर भगवान् का शरण लिया। फिर भयंकर काला रूप बना कर हाथ में परिघ रत्न नामक हथियार लेकर अनेक उत्पात करते हुए पहले देवलोक में गये