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नमस्कार करके नाटक बतलाया । वह ऋद्धि शरीर से निकल अनुसार वापिस शरीर में
कर कूटागार शाला के दृष्टान्त के प्रवेश कर गई । .
हो भगवान् ! क्या देवता किसी पुल को फेंक कर उसे वापिस ले सकते हैं ? हाँ, गौतम ! ले सकते हैं । अहो भगवान् इसका क्या कारण ? हे गौतम! पुद्गल फेंकते समय उसकी गति शीघ्र होती है और पीछे मन्द हो जाती है और देवता की गति पहले और पीछे शीघ्र ही रहती है । इस कारण से वह फेंके हुए पुद्गल को वापिस ले सकते हैं । अहो भगवान् ! तो फिर शक्रेन्द्रजी चमरेन्द्रजी को क्यों नहीं पकड़ सके ? हे गौतम ! चमरेन्द्रजी की नीचे जाने की गति शीघ्र है और ऊपर जाने की गति मन्द है । शक्रेन्द्रजी की ऊंचे जाने की गति शीघ्र है और नीचे जाने की गति मन्द है । इस कारण से शक्रेन्द्रजी चमरेन्द्रजी को नहीं पकड़ सके ।
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क्षेत्र काल द्वार कहते हैं - एक समय में शक्रेन्द्रजी जितना क्षेत्र ऊपर जा सकते हैं, उतना क्षेत्र ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और चमरेन्द्रजी को तीन समय लगते हैं । एक समय में चमरेन्द्रजी जितना क्षेत्र नीचा जा सकते हैं, उतना क्षेत्र नीचा जाने में शक्रेन्द्रजी को दो समय लगते हैं और वज्र को तीन समय लगते हैं ।"
शक्रन्द्रजी काल आसरी- एक समय में सबसे थोड़ा नीचा