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कर्म लगता है ? हे कालोदायी ! अजीवकार्य को पापकर्म नहीं लगता है किंतु जीवास्तिकाय को पापकर्म लगता है ।
भगवान् से प्रश्नोत्तर करके कालोदायी बोध को प्राप्त हुआ । खन्दक जी की तरह भगवान् के पास दीक्षा अङ्गीकार की, ग्यारह 'अङ्ग पढ़ेः ।
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किसी एक समय कालोदायी अणगार ने भगवान से पूछा कि हो भगवान् ! क्या जीवों को पापकर्म अशुभफल विपाक सहित होते हैं ? हाँ, कालोदायी । जीवों को पापकर्म अशुभफल विपाक सहित होते हैं - जैसे विषमिश्रित भोजन करते समय तो मीठा लगता है किन्तु पीछे परिणमते समय दुःखरूप दुर्वर्णादि रूप होता है । इसी तरह १८ पापकर्म करते हुए तो जीव को अच्छा लगता है किंतु पाप के कड़वे फल भोगते ममय जीव दुखी होता है।
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हो भगवान् ! क्या जीवों को शुभकर्म शुभफल वाले होते हैं ? हाँ, कालोदायी ! शुभकर्म शुभफल वाले होते हैं- जैसे कड़वी औषधि मिश्रित स्थाली पाक (मिट्टी के बर्तन में अच्छी तरह पकाया हुआ भोजन ) खाते समय तो अच्छा नहीं लगता किन्तु पीछे परिणमते समय शरीर में सुखदायी होता है । इसी तरह १८ पाप त्यागते समय तो अच्छा नहीं लगता परन्तु पीछे जब शुभ कल्याणकारी पुण्यफल उदय में आता है तब बहुत सुखदायी होता है ।
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