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हो भगवान् ! एक पुरुष अग्नि जलाता है और एक पुरुष अग्नि बुझाता है, इन दोनों में कौन महाकर्मी, महा क्रिया वाला महा आस्रव महा वेदना वाला है और कौन ल्पकर्मी अल्पक्रिया वाला, अल्प आस्रवी अल्प वेदना वाला है ? हे कालोदायी ! जो पुरुष अग्नि जलाता है वह महाकर्मी यावत् महावेदना वाला है क्योंकि वह पांच काया ( पृथ्वीकाय, अष्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय) का महा आरम्भी है, एक ते काया का अल्प आरम्भी है । जो पुरुष अग्नि बुझाता है वह कर्मी यावत् अल्प वेदना वाला है क्योंकि वह पांच काया का अल्प आरम्भी है, एक तेउकाया का महा आरम्भी इसलिए कर्मी या अल्प वेदना वाला है ।
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अहो भगवान् ! क्या अचित पुद्गल अवभास करते हैं, उद्योत करते हैं, तपते हैं, प्रकाश करते हैं ? हाँ, कालोदायी ! अचित पुद्गल अवभास करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं। कोपायमान तेजोलेशी लब्धिवंत अणगार की तेजोलेश्या निकल कर नजदीक या दूर जहाँ जाकर गिरती है वहाँ वे अचित्त पुद्गल अवभास करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं।
कालोदायी अणगार उपवास बेला तेला आदि तपस्या करते हुए केवलज्ञान केवलदर्शन उपार्जन कर सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त हुए । सेवं भो !
सेवं भंते !! .
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समाप्त