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________________ १२६ हजार जीव एक मछली के पेट में उत्पन्न हुए । बाकी प्रायः सः जीव नरक तिर्यंच में -:... - सेवं भंते ! :-... सेवं भते !!... .. ... (थोकड़ा नं०६८) : ..... श्री भगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के दसने उद्देशे में 'अन्यतीर्थी' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं राजगृह नगर के बाहर * बहुत अन्यतीर्थी रहते हैं । उनमें से कालोदायी भगवान् के पास आया और भगवान से पञ्चास्तिकाया के विषय में प्रश्न पूछा। भगवान ने फरमाया कि हे कालोदायी ! पांच अस्तिकाय हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति काय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय । इन में से जीवास्तिकाय जीव है, बाकी ४ अजीव हैं। इनमें से पुद्गलास्तिकाय रूपी है, बाकी ४ अरूपी हैं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, ये अजीव अरूपी है इन पर कोई खड़ा रहने में, सोने में बैठने में समर्थ नहीं है । पुद्गलास्तिकाय अजीवरूपी है इस पर कोई भी खड़ा रह सकता है, 1 . .. सा.सकता है, . " . .. . . .. सकता है। . .. .. १-अहो. भगवान् ! क्या अजीवकाय (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय ) को पाप..: १कालोदायी; २-शैलोदायी, ३शैवालोदायी, ४ उदय, ५.नामा-.. दय, ६ नर्मोदय, ७.अन्यपालक, शैलपालक, शंख पालका १० स्ती, ११ गृहपति। १४ उदय, ५.नामो
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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