________________
. १२३
___ (थोकड़ा नं० ६६) ... श्री भगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के आठवें उद्दशे में . __ 'छमस्थ अवधिज्ञानी' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं--- ..
१-अहो भगवान् ! गत अनन्त काल में क्या छद्मस्थ __ मनुष्य सिर्फ तप संयम, संवर ब्रह्मचर्य और आठ प्रवचन माता
के पालने से सिद्ध बुद्ध मुक्त हुआ है ? हे गौतम ! णो इणट्ठ सम (ऐसा नहीं हुआ)। अहो भगवान् ! इसका क्या कारण ? हे गौतम ! गतः अनन्त काल में जो सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए हैं वे सब उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक अरिहंत जिन केवली होकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए हैं, होते हैं और होवेंगे । जिस तरह छद्मस्थ का कहा उसी तरह अधोअवधिक और परम अधोअवधिक का भी कह देना चाहिए !
२-अहो भगवान् ! गत अनन्त काल में क्या केवली __ मनुष्य सिद्ध युद्ध मुक्त हुए हैं ? हाँ, गौतम, ! हुए हैं, वर्तमान
काल में होते हैं और भविष्य काल में होवेंगे।
लाषा है । इसलिये वे सुख दुःख को वेदते हैं । असंज्ञी जीव इच्छा और ज्ञानशक्ति के अभाव से अनिच्छा और अज्ञान पूर्वक सुख दुःख वेद है । संज्ञी जीव इच्छा और ज्ञानशक्ति युक्त होते हुए भी उपया अभाव से अनिच्छा और अज्ञान पूर्वक सुख दुःख वेदते हैं. तब जीव समर्थ और इच्छा युक्त होते हुए भी प्राप्त करने की शक्ति के अभाव से सिर्फ तीव्र अभिलाषा पूर्वक सुख दाव वेग
मदत है तथा
करने की शक्ति को