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१२२ इसका क्या कारण ? हे गौतम ! जैसे-अन्धकार में दीपक वि
आंखों से देखा नहीं जा सकता। छहों दिशाओं में दृष्टि फै कर देखे बिना रूप देखा नहीं जा सकता। इस कारण से अकाम निकरण वेदना वेदते हैं।
७-x अहो भगवान् ! क्या संज्ञी ( मन सहित ) ज प्रकाम ( तीव्र इच्छा पूर्वक ) वेदना वेदते हैं ? हाँ, गौतम वेदते हैं । अहो भगवान् ! इसका क्या कारण है ? हे गौतम वे समुद्र पार नहीं जा सकते, समुद्र पार के रूपों को नहीं दे सकते, देवलोक के रूपों को नहीं देख सकते, इस कारण से प्रकाम ( तीव्र इच्छा पूर्वक ) वेदना वेदते हैं। सेवं भंते !
सेवं भंते !!
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देख सकता है। वे इच्छा शक्ति और ज्ञानशक्ति युक्त होते हुए भी उपर बिना सुख दुःख का अनुभव करते हैं। जिस प्रकार असंझी जीव इ.
और ज्ञान शक्ति रहित होने से अनिच्छापणे और अज्ञान दशा में र दुःख वेदते हैं उसी तरह से संज्ञी जीव इच्छा और ज्ञानशक्ति होते भी शक्ति की प्रवृत्ति के अभाव में तीव्र अभिलाषा के कारण अनि पूर्वक सुख दुःख वेदते हैं। __x अहो भगवान् ! क्या संज्ञी (मन सहित) जीव प्रकाम निकर तीव्र अभिलाषा पूर्वक सुख दुःख वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते अहो भगवान् ! किस तरह वेदते हैं ? हे गौतम ! जो समुद्र के । नहीं जा सकते, समुद्र के पार रहे हुए रूपों को नहीं देख सकते, वे अभिलाषा पूर्वक सुख दुःख वेदते हैं। वे इच्छाशक्ति और ज्ञानशक्ति