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________________ है गौतमः ! णो इण सम-वह उत्थानादि से साधु के योग्य विपुल भोग भोगने में समर्थ है। भोगों का त्याग पञ्चकहाण करने से वह महानिर्जरा और महा पर्यवसान (महा फल) बाला होता है। ४---जिस तरहः परमावधिज्ञानी का कहा उसी तरह से केवलज्ञानी को कह देना चाहिये। .. अहो भगवान् ! क्या - असंज्ञी ( मन रहिन ) त्रस और पांच स्थावर अज्ञानी अज्ञानके अन्धकार में डूबे हुए अज्ञान रूपी लोह जाल में फंसे हुए अकाम निकरण (अनिच्छा पूर्वक ) वेदना वेदते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदते हैं। ........ ... अहो भगवान् ! क्या संज्ञी ( मन सहित ) जीव काम निकरण वेदना वेदते हैं. १.हाँ, गौतम.! वेदते हैं। अहो भगवान् ! ...: जो जीव असंज्ञी (मन रहित) हैं उनके मन नहीं होने से इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति के अभाव में क्या अकामंनिकरण (अनिच्छापूर्वक) अज्ञान पणे वेदना-सुख दुःखको अनुभव करते हैं ? इस प्रश्न का यह भावार्थ हैं। इसका उत्तर-हाँ अनुभव करते हैं इस तरह दिया है। * अहो भगवान् ! जो जीव इच्छा शक्ति युक्त और संज्ञी (मनसहित समर्थ) है क्या वह भी अनिच्छापूर्वक अज्ञान पणे से सुख दुःखं का अनुभव करते हैं ? हाँ गौतम ! करते हैं। अहो भगवान् ! इसका क्या कारण ? हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष देखने की शक्ति से युक्त है तो भी बह पुरष दीपक के विना अन्धकार से रहें हुए पदार्थों को नहीं देखें सकता तथा उपयोग बिना ऊंचे नीचे और पीठ पीछे के पदार्थों को नहीं
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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