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में धूलि युक्त भयंकर आंधी चलेगी, फिर संवर्तक हवा चलेगी, दिशाएं धूल से भर जाएंगी, प्रकाश रहित होंगी, अरस विरस चार खांत अग्नि विजली विप मिश्रित बरसात होगी । वनस्प तियाँ, Xत्रसप्राणी पर्वत नगर सब नष्ट हो जाएंगे। पर्वतों में एक वैताढ्य पर्वत और नदियों में गंगा सिन्धु नदी रहेगी । सूर्य खूब तपेंगा, चन्द्रमा अत्यन्त शीतल होवेगा । भूमि अंगार, भोभर, राख तथा तपे हुए तवे के समान होगी । गंगा सिन्धु नदियों का पाट रथ के चीले जितना चौड़ा रहेगा । उसमें रथ की धुरी प्रमाण पानी रहेगा । उसमें मच्छ कच्छ आदि जलचर जीव बहुत होंगे। गंगा सिंधु महानदियों के पूर्व पश्चिम तट पर ७२ बिल हैं । उनमें मनुष्य रहेंगे । वे मनुष्य खराब
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x बिलों और गंगा सिन्धु नदी के सिवा गांव और जंगल में चलने वाले स प्राणी |
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* वैताढ्य पर्वत के इस तरफ दक्षिण भरत में बिल पूर्व के तट पर हैं और ६ बिल पश्चिम के तट पर हैं। इसी तरह १५: बिलः वैताढ्य पर्वत के उत्तर की तरफ उत्तर भरत में हैं । ये ३६ बिल गंगा नदी के तट पर वैताढ्य पर्वत के पास हैं । ऐसे ही ३६- बिल सिंधु नदी के तट पर वैताढ्य पर्वत के पास हैं । इन ७२ बिलों में से ६३ बिलों में मनुष्य मनुष्यरणी रहेंगे । ६ बिलों में चौपद पशु रहेंगे और बाकी ३ बिलों में पक्षी रहेंगे । मनुष्य मच्छ कच्छंप का आहार करेंगे । पशु पक्षी उन मच्छ कच्छंप आदि की हड्डियां आदि चाट कर रहेंगे। मनुष्यों के शरीर की रचना इस प्रकार होगी- घड़े के पींदा ( नीचे का भाग ) समान शिर होगा, जौ के शालू के समान माथे के केश होंगे, कढ़ाई के ५ के समान ललाट होगा, चीड़ी के पांखों के समान भाँफर होंगे,
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