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१०४ स्थिति प्रासरी कृष्ण लेशी नैरयिक अल्पकर्मी और नीललेशी नरयिक महाकर्मी हो सकता है । इस तरह ज्योतिपी+देव को वर्ज कर २३. दण्डक में जिस में जितनी लेश्या पावे उसमें उतनी लेश्या से अल्पकर्मी और महाकर्मी कह देना चाहिए। . . ७-अहो भगवान् ! क्या वेदना और निर्जरा एक कही जा सकती हैं ? हे गौतम ! वेदना और निर्जरा एक नहीं कहीं जा सकती है। वेदना कर्म है और निर्जरा. नोकर्म है। इस तरह
* कृष्ण लेश्या अत्यन्त अशुभ.परिणाम रूप है उसकी अपेक्षा नील लेश्या कुछ शुभ परिणाम रूप है । इसलिये सामान्यतः कृष्णलेश्या वाला महाकर्मी और नीललेश्या.वाला अल्पकर्मी होता है । परन्तु कदाचित् आयुष्य की स्थिति की अपेक्षा कृष्ण लेश्या वाला अल्पकर्मी और नील लेश्या वाला महाकर्मी भी हो सकता है। जैसे कि कृष्ण लेश्या वाला नैरयिक जिसने अपनी आयुष्य की बहुत स्थिति क्षय कर दी है उसने बहुत कर्म भी क्षय कर दिये हैं, उसकी अपेक्षा कोई नील लेश्या वाला नैरयिक १० सारोपगम की स्थिति से पांचवीं नरक में अभी तत्काल उत्पन्न हुआ
ही है उसने आयुष्य की स्थिति अधिक क्षय नहीं की है, इसलिये अभी E. उसके बहुत कर्म बाकी हैं। इस कारण वह उस कृष्ण लेशी नैरयिक की
अपेक्षा महाकर्मी है। . .:. + ज्योतिषी देवों में सिर्फ एक तेजोलेश्या पाई जाती है, दूसरी
लेश्या नहीं पाई जाती । इस कारण से दूसरी लेश्या की अपेक्षा अल्पकर्मी और महाकर्मी नहीं कहा जा सकता।... ... ... ... ... . .
x उदय में आये हुये कर्म को भोगना वेदना कहलाती है और कर्म भोग कर क्षय कर दिया गया है वह निर्जरा कहलाती है । य वेदना को कर्म कहा गया है और निर्जरा को नोंकर्म कहा गया है।