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________________ १०५ वेदना और निर्जरा में तीन काल आसरी कह देना | वेदना और निर्जरा का समय एक नहीं है । जिस समय वेदता उस समय निर्जरता नहीं है । जिस समय निर्जरता है, उस समय वेदता नहीं । वेदना और निर्जरा का समय लग अलग है । इस तरह २४ ही दण्डक पर १२० अलावा कह देना । हो भगवान् ! क्या समुच्चय जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? हे गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा (द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा ) जीव शाश्वत हैं और पर्याय की अपेक्षा (पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा ) जीव अशाश्वत हैं । इस तरह २४ ही दण्डक कह देना । - ' : 2. सेवं भंते ! सेवं भंते !! ( थोकड़ा नं० ६१ ) * श्री भगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के चौथे उददेशे में 'जीव' का थोकड़ा, चलता है सो कहते हैं-जीवा १, छव्विह पुढवीर, जीवाण ३, ठिई भवट्टिई ४, काये५, । गिल्लेवण ६, अणगारे ७, किरियासम्मत्त मिच्छतं ८ ।। १- अहो भगवान् ! संसारी जीव के कितने भेद हैं ? गौतम ! ६ भेद हैं- पृथ्वीकाय, अकाय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय TWO MIK * छहकाय जीवों के भेदानुभेद श्री पन्नवणा सूत्र पद पहले के अनुसार जान लेना चाहिये ।
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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