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चय जीव में भांगा पावे ३मनुष्य में भांगा, पावे ३ । तियंच पंचेन्द्रिय में भांगा पावे २ । वाकी २२ दण्डक में भांगा पावे एक-अपचक्खाणी । .... ......... .. :: : अल्पवहुत्व-समुच्चय जीव में सब से थोड़े पच्चक्खाणी, उससे पंचक्खाणापचक्याणी .. असंख्यातगुणा, उससे अपचक्खाणी: अनन्तगुणा । तिर्यंच पंचेन्द्रिय में सबसे थोड़े पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणी; उससे अपञ्चक्खाणी असंख्यातगुणाः । मनुष्य में सबसे थोड़े पञ्चक्खाणी, उससे. पञ्चक्खाणापञ्चक्खाणी संख्यातगुणा, उससे अपचक्खाणी असंख्यातगुणा । ...८ अहो भगवान् ! क्या जीव शाश्वत है या अशाश्वत है ? हे गौतम ! जीव द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है और पर्याय की अपेक्षा अशाश्वत है । इसी तरह २४. ही दण्डक कह देना चाहिये । .... सेवं भंते ! .......... सेवं भंते !! .....
... .. (थोकड़ा नं ६०) .. श्री भगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के तीसरे उद्दशे में _ 'वनस्पति के आहार आदि' का थोकड़ा चलता है सो
. कहते हैं
१-अहो भगवान् ! वनस्पति किस काल में अल्पाहारी होती है और किस काल में महाआहारी होती है ? हे गौतम ! पावस ऋतु (श्रावण भादवा ) और वर्षा ऋतु (आसोज, कार्तिक ) में सब से अधिक महा अाहारी होती है। उसके बाद
मृतु (मिगसर, पौष ), हेमन्त ऋतु ( माघ, फाल्गुन, )