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.. १२-अहो भगवान् ! शस्त्रातीत शस्त्रपरिणत आहार पानी किसे कहते हैं ? हे गौतम ! जो अग्नि वगैरह शस्त्र से अच्छी तरह परिणत होकर अचित्त ( जीव रहित ) हो गया हो उस आहार पानी को शस्त्रातीत शस्त्रपरिणत कहते हैं। .
साधु को चाहिए कि आहार पानी के सब दोष टाल कर संयम निर्वाह के लिए शुद्ध आहार पानी भोगवे । सेवं भते!
सेवं भंते !! . . (थोकड़ा नं०५६) श्री लगवतीजी सूत्र के सातवें शतक के दूसरे उद्देशे में सुपच्चरखाण हुण्यच्चयाण (पचक्खाणापच्चक्वाणी) का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं--
१--अहो भगवान् ! कोई कहता है कि मुझे सर्व प्राण सर्व भूत सर्व जीव सर्व सत्व को हनने का (मारले का) पच्चक्खाण है तो उसके पच्चस्खाण को सुपच्चक्खाण कहना चाहिए या दुपच्चक्माण कहना चाहिए ! हे गौतम !* उसके पच्चक्खाण को सिय ( कदाचित् ) सुपच्चरखाण कहना चाहिए और सिय दुपच्चरखाण कहना चाहिए । अहो भगवान् ! इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! जिसको ऐसा जाणपणा नहीं है किये जीव हैं, ये अजीव हैं,ये त्रस हैं, ये स्थावर हैं, यदि वह कहता है कि मुझे सर्व प्राण सर्व भूत सर्व जीव सर्व सत्त्व को हनने का त्याग है तो (१) वह मृपावादी है, सत्यवादी नहीं, २ तीन करण तीन ___ ये दोनों तरह के पचक्खाण साधु आसरी (साधुके लिए) कहे हैं।
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