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जोग से असंजति है, ३ अविरति है, ४ पाप कर्म नहीं पच्चक्खे हैं, ५ वह सक्रिय (आश्रव सहित ) है, ६ असंवुडा ( संवररहित.) है;७ छह काया का दण्डी ( दण्ड देने वाला-हिंसाकरने वाला) है, ८ एकान्त बाल-अज्ञानी है, उसके पञ्चक्खाण दुपञ्चक्खाण है, सुपच्चक्खाण नहीं।
जिसको ऐसा जाणपणा (ज्ञान) है कि ये जीव हैं, ये अजीव हैं, ये त्रस हैं, ये स्थावर हैं, यदि वह कहता है कि मुझे
सर्व प्राण सर्व भत सर्व जीव सर्व सत्व को हनने ( मारने) का .. त्याग है. तो १ वह सत्यवादी है, मृषावादी नहीं, २ तीन करण तीन जोग से संजति है, ३ विरति है, ४ पाप कर्म का पञ्च
खाण किया है, ५ अक्रिय (आश्रव रहितः) है, ६ संवुडा (संवर सहित.) है, ७ छह काया का रक्षक है, ८ एकान्त पण्डित .. ज्ञानी है। उसके पच्चक्खाण सुपचक्खाण हैं, दुपचक्खाण नहीं।
२ अहो भगवान् ! पञ्चक्खाण कितने प्रकार के हैं ? हे गौतन ! पञ्चक्खाण दो प्रकार के हैं-मूलगुण पचक्खाण और उत्तर गुण पञ्चक्खाण । मूलगुण पञ्चक्खाण के दो भेद-सर्व मूल गुण पञ्चक्खाण और देश मूल गुणः पञ्चक्खाण । सर्व मूल गुण पञ्चक्खाण के ५ भेद-सर्वथा प्रकार से हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह का त्याग करना अर्थात् पाँच महाव्रतों का पालन करना । देश मूल गुण पञ्चक्खाण के ५ भेद-स्थूल प्राणाति... ये पञ्चक्खाण साधु के लिए हैं।
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