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बीज समाकित को प्राप्त करता है और अनुक्रम से मोक्ष में जाता है । ७ - अहो भगवान् ! क्या कर्मरहित जीव की गति ( गमन ) होती है ? हाँ, गौतम ! होती है । अहो भगवान् ! कर्मरहित जीव की कैसी गति होती है ? हे गौतम! तुम्बी, फली, धूम, ( धूंचा ), वाण के दृष्टान्त से कर्म रहित जीव की गति ऊर्ध्व ( ऊंची ) होती है ।
८ - श्रहो भगवान् ! दुखी जीव दुःख से व्याप्त होता है अथवा दुखी ( दुःख रहित ) जीव दुःख से व्याप्त होता है ? हे गौतम! दुखी जीव दुःख से व्याप्त होता है परंतु दुखी जीव दुःख से व्याप्त नहीं होता है । १ दुखी जीव दुःख से व्याप्त होता है, २ दुःख को ग्रहण करता है, ३ दुःख की उदीरणा करता है, ४ दुःख को वेदता है, ५ दुःख की निर्जरा करता है, ये पांच बोल समुच्चय जीव और २४ दण्डक के साथ कहने से १२५ अलावा हुए ।
६- श्रहो भगवान् ! बिना उपयोग गमन करते, खड़े रहते, बैठते, सोते, वस्त्र पात्रादि लेते रखते हुए साधु को ईर्यापथिकी
* जैसे कोई पुरुष तुम्बी पर मिट्टी के आठ लेप करके पानी में डाले तो भारी होने से वह तुम्बी नीचे चली जाय परन्तु वे मिट्टी के सब लेप गल कर उतर जाने से तुम्बी पानी के ऊपर आ जाती है। इसी प्रकार आठ कर्म रहित जीव की भी ऊर्ध्वगति ( ऊंची गति ) होती है ।
जैसे एरण्ड का फल सूखने पर उसका बीज उछल कर बाहर पड़ता है | धूम ( धूआ ) स्वाभाविक ही ऊपर जाता है। धनुष से छूटा हुआ वारण एक दम सीधा जाता है । इसी तरह आठ कर्मों से छूटे हुए ( रहित ) जीव की गति ऊर्ध्व ( ऊंची ) होती है, इसलिए वह मोक्ष में है ।