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________________ ४--अहो भगवान् ! उपाश्रय में रह कर सामायिक करने वाले श्रावक को ईर्यापथिकी क्रिया लगती है या सांपरायिकी ? हे गौतम ! सकपायी होने से उसको सांपरायिकी क्रिया लगती है। ५-अहो भगवान् ! किसी श्रावक के सजीवों को मारने का त्याग किया हुवा है लेकिन पृथ्वीकाय के वध का त्याग नहीं है वह पृथ्वी खोदे उस वक्त कोई उस जीव मर जाय तो क्या उसके व्रत में अतिचार लगता है ? हे गौतम ! णो इण? समह। वह श्रावक त्रस जीवों को मारने की प्रवृत्ति नहीं करता है, इसलिए ग्रहण किए हुए उसके व्रत में अतिचार नहीं लगता है, व्रत भंग नहीं होता है। इसी तरह जिस श्रावक ने वनस्पति छेदने का त्याग किया है, पीछे पृथ्वी खोदते हुए जड़ मूल आदि छेदन हो जाय तो उसके ग्रहण किये हुए व्रत में अतिचार ( दोष.) नहीं लगता है, व्रत भंग नहीं होता है। .... ::६- अहो भगवान् ! त्थारूप के ( उत्तम )श्रमण माहण को प्रासुक एषणीय आहार पानी बहरावे ( देवे ) तो क्या लाभ होता है ? हे गौतम ! वह जीव समाधि प्राप्त करता है, बोध..® सामान्य रीति से देशविरति श्रावक को संकल्प. पूर्वक त्रस जीव .की हिंसा का त्याग होता है, इसलिए जब तक जिसकी हिंसा का त्याग - किया हो, उसकी संकल्प पूर्वक हिंसा करने की प्रवृत्ति न करे तब - तक उसके ग्रहण किये हुए व्रत में दोष नहीं लगता है।
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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