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________________ कविता एवं इतर साहित्य [ २२३ लड़के के विवाह में कहिए मोलतोल क्यों करते हो? इस काले कलक को हा हा ! क्यों अपने सिर धरते हो? जिनके नहीं शक्ति देने की क्यों उनका धन हरते हो? चढ़कर उच्च सुयश-सीढ़ी पर क्यों इस भौति उतरते हो?' अपने कई धार्मिक और नैतिक आदेशों की अभिव्यंजना द्विवेदीजी ने की है। मांसाहारियों पर व्यंग्य करनेवाली अपनी कविता 'मांसाहारी को हण्टर' में उन्होंने देश में खानपान-सम्बन्धी नैतिकता पर बल दिया है : धिक्कार तोहि, नर-जन्म वृथा हि पायो, आहार मांस करि मानुषता नसायो। तोसों भले पशु, असभ्य मनुष्य आदि, हा हन्त ! हन्त !! तब जीवन जन्मबादि ॥२ इस प्रकार, द्विवेदीजी ने युग की आवश्यकता और समाज की मांग के अनुरूप दुभिक्ष, कान्यकुब्नो की अधोगति, स्त्रीशिक्षा, विधवाओं की दशा, मांसभक्षण, स्वतन्त्रता आदि कई विषयों को कविता का आलम्बन बनाया। उनकी समकालीन सामाजिक कविताधारा मुख्य रूप से नैतिक आदर्शो से व्याप्त थी। भारतेन्दु-युगीन कवियों ने समाज के अवगुणों को दूर करने के लिए हास्य और व्यंग्य की मनोरजनकारी सुधारात्मक नीति अपनाई थी, परन्तु द्विवेदीजी एवं उनके समसामयिक कवियों ने सामाजिक अवनति को सुधारने के लिए नीतिपरक-आदर्शवादी मार्ग अपनाया। सच पूछा जाय, तो हिन्दी-कविता में आदर्शवादिता का चरम प्रस्तुतीकरण द्विवेदीकालीन काव्य में ही हुआ। सामाजिक-नैतिक आदर्शो की अभिव्यंजना करनेवाली कविताओं के साथ-ही-साथ द्विवेदीजी ने आध्यात्मिक तत्त्वो को भी अपनी कविता का आलम्बन बनाया। भर्तृहरि, पण्डितराज जगन्नाथ और कालिदास प्रभृति की संस्कृतभक्तिपरक रचनाओं का अनुवाद करने तथा सात्त्विक ब्राह्मण-वंश में जन्म लेने के संस्कार-स्वरूप उनके हृदय मे भक्ति एवं अध्यात्म की ज्योति भी जल रही थी। ईश्वर की भक्ति-सम्बन्धी उनकी अनेक कविताएँ प्रार्थना की कोटि की हैं, तथा उनमें मुख्य रूप से देश की बिगड़ी हुई दशा एवं हिन्दी की अल्पप्रगति को सुधारने की कामना की गई है। द्विवेदीजी की ऐसी कविताओं में 'नाहि ! नाहि !! त्राहि !!!'3 १. 'सरस्वती', नवम्बर, १९०६ ई०, पृ० ४३८ । २. 'हिन्दी-बंगवासी', १९ नवम्बर, १९०० ई० । ३. 'श्रीवेंकटेश्वर-समाचार', ७ अप्रैल, १६९९ ई. ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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