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________________ २२२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व देश-भर में जैसी विडम्बना व्याप्त थी, उसकी ओर संकेत उन्होंने अपनी विधिविडम्बना' शीर्षक कविता में किया है : दुराचारियों को तू प्रायः धर्माचार्य बनाता है, कुत्सित कर्म-कुशल-कुटियों को अक्षरज्ञ उपजाता है । मूर्ख धनी विद्वज्जन निर्धन उलटा सभी प्रकार, तेरी चतुराई को ब्रह्मा! बार-बार धिक्कार ।' विधाता को धिक्कारने के व्याज से इन पंक्तियों मे देश की विविध उल्टी व्यवस्थाओं की ही चर्चा हुई है। अपनी काव्यकुब्ज ब्राह्मण-जाति की अधोगति का द्विवेदीजी को बड़ा क्षोभ था। 'कान्यकुब्जलीलामृतम्' तथा 'कान्यकुब्ज-अबलाविलाप' ‘में उनके इस असन्तोष को अभिव्यक्ति मिली है। यथा : हे भगवान ! कहाँ सोये हो ? विनती इतनी सुन लीज, कामिनियों पर करणा करके कमले ! जरा जगा दी। कनवजियों में घोर अविद्या जो कुछ दिन से छाई है, दूर कीजिए उसे दयामय ! दो सौ दफे दुहाई है। कान्यकुब्जों मे व्याप्त अज्ञान के अन्धकार के दूर करने के साथ-ही-साथ स्त्रियों के उत्थान की प्रार्थना भी द्विवेदीजी ने ईश्वर से की है। स्त्रियों की अशिक्षा तथा उनकी सामाजिक अधोगति को दूर करने के सम्बन्ध में उन्होंने महिला-परिषद् (वाशी) के लिए रचे गए गीतों में हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। वे लिखते हैं : . पढ़ती थी वेद तक जहाँ महिला सदैव ही, नारी-समूह है वही अज्ञान हमारा। 'कान्यकुब्ज-अबला-विलाप' में 'उन्होने नारी-जीवन की समस्त वेदना को मुखरित किया है। इसी क्रम में वे गोस्वामी तुलसीदास की ख्यात पंक्तियो (ढोल -गँवार शूद्र पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी) पर व्यंग्य भी करते है। यथा : महामलिन से मलिन काम हम करती हैं दिनरात, दुखी देख पति पिता पुत्र को व्याकुल हो कृश करतों, गात । हे भगवान हाय ! तिस पर भी उपमा कैसी पाती हैं, ढोल तुल्य ताड़न अधिकारी हमी बनाई जाती हैं। स्त्रियों की समस्या से ही सम्बद्ध दहेज की प्रथा भी है। द्विवेदीजी ने 'ठहरौनी' कविता में इस प्रथा की निःसारता एवं निर्ममता का बखान किया है : १. 'सरस्वती', मई १९०१ ई०, पृ. १४७ । २. श्रीदेवीदत्त शुक्ल : (सं०) 'द्विवेदी-काव्यमाला', पृ. ४३७ । ३. 'सरस्वती', जनवरी, १९०६ ई०, पृ०३७ । ४. 'सरस्वती', सितम्बर, १९०६, पृ० ३५२ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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