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२२४ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व 'प्रार्थना १ 'भारत की परमेश्वर से प्रार्थना'२ आदि उल्लेखनीय है । इनमें भगवान् से सुधार एवं उच्च आदर्शस्थापन की कामना ही की गई है । यथा :
हे जगदीश! शीश मैं अपनो बीस बार महि धारी। पुनि पुनि पुनि तण तोहि जोरि कर विनती करौं तिहारी ॥ कोप शान्त करि कान्त रूप धरि हरे ! हरहु दुख भारी।
न तु पाताल प्रवेश करेगी अब यह देश दुखारी ॥3 द्विवेदीजी की कई कविताओं में ईश्वर और जगत् से सम्बद्ध उनके आध्यात्मिक विचारों का उपस्थापन हुआ है। 'देवीस्तुतिशतक' उनकी मौलिक भक्तिपूर्ण काव्यरचना है। दैहिक तापों से मुक्ति पाने के लिए चण्डी भवानी की रूपवर्णनयुक्त स्तुति एवं उनके प्रति अपने आत्मनिवेदन को द्विवेदीजी ने इस रचना में मुखर किया है, साथ-ही-साथ लोकहित की भावना से भी उन्होंने अपने 'देवीस्तुतिशतक' को अनुप्राणित किया है । संस्कृत की सूर्यशतक, परमेश्वरशतक, चण्डीशतक आदि रचनाओं की पद्धति पर इसकी रचना हुई है और तदनुकूल ही इसमें भी देवी के विराट रूप की स्तुति गाई गई है। यथा :
शक्ति त्रिशूल असिपास गदा कुठारा, धन्वा धुरीण युत केहरि पै सवारा । जासों समस्त महिषासुर सैन्य हारी,
ता अष्टबाहु जननीहि नमो हमारी ।।४ देवी चण्डी की ही भाँति ईश्वर के अन्य रूपों तथा उनकी महिमा का भी अंकन उन्होंने अपनी कुछ कविताओं में किया है । इस कोटि की उनकी प्रमुख कविताओं में 'अयोध्या का विलाप', 'ईश्वर की महिमा'६, 'भगवान की बड़ाई', 'गोरी',
गंगा-भीष्म'९ आदि की चर्चा की जा सकती है। ईश्वर के अस्तित्व में अगाध 'विश्वास रखने और आध्यात्मिक रुचि से सम्पन्न होते हुए भी द्विवेदीजी ने धार्मिक
१. 'सरस्वती', फरवरी, १६०२ ई०, पृ० ८६-९३ । २. 'आचार्य द्विवेदी' : (सं०) निर्मल तालवार, पृ० ७१ पर उद्धृत । ३. 'हिन्दी-बंगवासी', २९ नवम्बर, १८८७ ई०। ४. 'आचार्य द्विवेदी' : (सं०) निर्मल तालवार पृ० ७० पर उद्धत । ५. 'सुदर्शन', मार्च, १९०० ई० । ६. 'सरस्वती', दिसम्बर, १९०१ ई०, पृ० ४०६ । ७. 'सरस्वती', मार्च, १९०६ ई०, पृ० १०२-१०३ । ८. 'सरस्वती', पृ० १०३-१०४ । ९. 'सरस्वती', मई १९०६ ई०, पृ० १७३-१७४ ।