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________________ षष्ठ अध्याय आचार्य द्विवेदीजी की कविता एवं इतर-साहित्य कविता: भारतीय भाषाओं में आधुनिक काल का प्रारम्भ सन् १८५७ ई० के बाद हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के इसी उत्तरार्ध काल को समस्त भारतीय साहित्य में नूतन चेतना और आधुनिकता का उषःकाल कहा जा सकता है । गद्य का विकास, अँगरेजी और यूरोपीय भाषाओं का प्रभाव, प्राचीन अधिकतर रूढियों के प्रति अविश्वास, समाज-सुधार की उत्कट अभिलाषा, राष्ट्रीय चेतना और नये-नये विषयों के साहित्यिक अवतरण के कारण सभी भाषाओं के साहित्य में एक युगान्तर उपस्थित हो गया । हिन्दी के क्षेत्र मे भी यह क्रान्ति हुई। आधुनिक हिन्दी-काव्य के इस प्रथम प्रवाह को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अभिनव सम्भावनाओं तथा अभिव्यक्ति से सम्पन्न किया। भारतेन्दु के व्यक्तित्व-कर्तव्य में अनेक पुरानी परम्पराएँ आकर मिलती है, तो कई नूतन परम्पराएँ जन्म भी लेती हैं। डॉ. सुधीन्द्र के शब्दों में "शताब्दियों से हिन्दी-कविता भक्ति या शृगार के रंग में रंगी चली आ रही थी। केवल चुम्बन और आलिंगन, रति और विलास, रोमांच और स्वेद, स्वकीया और परकीया की कड़ियों में जकड़ी हिन्दी कविता को भारतेन्दु ने सर्वप्रथम विलास-भवन और लीलाकुजों से बाहर लाकर लोकजीवन के राजपथ पर खड़ा कर दिया। हिन्दी-कविता में भारतेन्दु ने सर्वप्रथम समाज के वक्षःस्थल की धड़कन को सुनाया। काव्य में यह रंग-परिवर्तन हिन्दी ने पहली बार देखा । व्रजभाषा में यह विषय की क्रान्ति थी।"१ प्राचीन काव्य-परम्पराओं में पूर्ण अनास्था नहीं रखते हुए भी भारतेन्दु ने खड़ी बोली को नवीन विषयों से सम्पन्न किया और नये क्षेत्रों के सन्धान की दिशा में उसे प्रवृत्त किया। परन्तु, भारतेन्दु खड़ी बोली में काव्यरचना को प्रोत्साहित नहीं कर सके। यह कार्य आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के हाथों होना बदा था । काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने के लिए व्रजभाषा बनाम खड़ी बोली का जो संघर्ष भारतेन्दु-युग से ही चल रहा था, उसे द्विवेदीजी ने समाप्त कर दिया। इस संघर्ष को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ श्रीधर पाठक ने अपनी खड़ी बोली की कविताओं द्वारा दिया। उन्होंने भाषा को साहित्यिक एवं प्रांजल रूप प्रदान करने के लिए व्रजभाषा तथा अरबी-पारसी के शब्दों का क्रमशः बहिष्कार किया और उनके स्थान पर अर्थानुकूल व्यंजक तत्सम शब्द सन्निविष्ट कर • खड़ी बोली-जगत् को वैसा प्रभावशाली नेतृत्व नहीं प्रदान कर सके, जैसा भारतेन्दु ने किया था। श्रीअशोक महाजन ने लिखा है : । १. डॉ. सुधीन्द्र : 'हिन्दी-कविता का क्रान्तियुग', पृ० २६ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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