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________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [-१९५ आचार्य द्विवेदीजी ने 'सम्पादकों, समालोचकों और लेखकों का कर्त्तव्य' शीर्षक निबन्ध में उस समालोचना की ओर भी संकेत किया है, जिसे वे पाण्डित्यसूचक या पण्डिताई दिखानेवाली समीक्षा कहते हैं। ऐसे समालोचक की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होने कहा है कि 'पाण्डित्यसूचक समालोचना का लेखक समीक्ष्य ग्रन्थ में व्याकरण, अलकारशास्त्र, छन्दःशास्त्र और मुहावरे की भूलें दिखलाता है । वह यह नही देखता कि इन बातों ने छन्द, अलकार, व्याकरण आदि को गौण कहा है और उनके साक्ष्यानुसार इनपर जोर देना 'अविवेकता-प्रदर्शन' के सिवा और कुछ नही। व्याकरण आदि की भूलें होती किससे नही ? अँगरेजी, फारसी, अरबी, संस्कृत आदि भाषाओं के बड़े-बड़े विद्वानों ने क्या इस तरह की भूलें नही की ? पर इससे क्या उनके ग्रन्थों की प्रतिष्ठा कुछ कम हो गई है ?१ उपर्युक्त उद्धरण द्विवेदीजी जैसे भाषामर्मज्ञ की भाषाप्रयोग-सम्बन्धी उदारता कर प्रतिबिम्बन करता है और बतलाता है कि भाषा-प्रयोग में असाधारण सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। भाषा-प्रयोग में रंचमात्र भी असावधानी बरती गई कि वह दूषित हो जाती है और उसमें अशुद्धियाँ आ जाती हैं। कभी-कभी भावविभोर लेखक रूप की अपेक्षा 'वस्तु' पर अधिक ध्यान दे बैठता है अथवा भाव में तल्लीन होने के कारण भाषा के प्रति उदासीन हो जाता है। कवियों की भाषा के सम्बन्ध में यह बात अधिक प्रासंगिक दीखती है। कवि की रचनाएँ अधिक रसदीप्त और भावाकुल होती हैं, इसलिए एक ओर तो कवि की भाषा अधिक प्राणवती और प्रभावती होती हैं, वहीं दूसरी ओर उसमे व्याकरण आदि की भूलें हो सकती है। द्विवेदीजी ने जिसे पाण्डित्यसूचक समालोचना कहा है, उस 'स्काली क्रिटिसिज्म' के विरुद्ध इँगलैण्ड में एक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ था, जिसके नेताओं में एक बार लीविस अग्रगण्य थे । पाण्डित्यसूचक आलोचना केवल व्याकरणादि भूलों की ओर ही संकेत नहीं करती, अपितु विवेच्य कृति के ऊपर पड़नेवाले प्रभावों और परिवेशों का भी विवेचन करती है। उच्च कोटि की आलोचना, लीविस के मतानुसार, कृति की आलोचना करती है, कृतिकार की नहीं; वह पुस्तक की आलोचना होती है, लेखक के देश, काल और जीवन की नही। द्विवेदीजी का स्पष्ट अभिमत है कि समालोचक का कर्तव्य यह दिखलाना है कि *किसी पुस्तक या प्रबन्ध में क्या लिखा गया है, किस ढग से लिखा गया है, वह विषय उपयोगी है या नही, उससे किसी का मनोरंजन हो सकता है या नहीं, उससे किसी को लाभ पहुंच सकता है या नहीं, लेखक ने कोई नई बात लिखी है या नहीं, यदि नहीं, तो उससे पुरानी ही बात को नये ढंग से लिखा है या नहीं। २ समालोचक को इस बात १. महावीरप्रसाद द्विवेदी : विचार-विमर्श, पृ० ४५ । २. उपरिवत्।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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