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________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १२९ प्रतिनिधि शैली सरल एवं प्रवाहमयी भाषा की ही है । द्विवेदीजी की आलोचनात्मक शैली का यही प्रमुख रूप कहा जा सकता है। ___आचार्य द्विवेदीजी की गद्यशैली का एक अन्य रूप भावात्मक भी है। भावावेश के सच्चे हृदयोद्गार इसी शैली में प्रकट किये जाते हैं। द्विवेदीजी से पूर्व ठाकुर जगमोहन सिंह एवं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र प्रभृति ने इस शैली का सुन्दर प्रयोग किया था। मन की भावुकता को मार्मिक शैली में प्रस्तुत करने की कला में द्विवेदीजी को सफलता मिली है। डॉ० उदयभानु सिंह ने लिखा है : __"इष्ट-मित्रों की मृत्यु पर शोकाद्गार, मर्मस्पर्शी परिस्थितियों में आत्मनिवेदन, 'दमयन्ती का चन्द्रोपालम्भ' आदि में हृदय की मार्मिक अनुभूतियों के अभिव्यंजन की शैली भावात्मक है । इस प्रकार की रचनाओं में कटुता, जटिलता, शिथिलता, पुनरुक्ति, अनौचित्य, ग्राम्यता, आडम्बर-प्रदर्शन, असम्बद्धता आदि दोषों से हीन प्रसन्न, गम्भीर, मधर, कोमल और कान्त पदावली में हृदय का सजीव चित्र अंकित किया गया है।" उदाहरणार्थ, मार्मिक भावप्रवणता का एक अवतरण है : ___ "कूपमण्डूक भारत तुम कबतक अन्धकार में पड़े रहोगे ? प्रकाश में आने के लिए तुम्हारे हृदय में क्या कभी सदिच्छा ही नहीं जागरित होती ? पक्षहीन पक्षी की तरह क्यों तुम्हें अपने पिंजड़े से बाहर निकलने का साहस नही होता ? क्या तुम्हें अपने पुराने दिनों को कभी याद नही आती ?"२ प्रस्तुत अवतरण में द्विवेदीजी ने प्रश्नवाचक वाक्यों के सटीक प्रयोग द्वारा देश-दशा की मार्मिक व्याख्या की है, जिसके अन्तराल से उनकी भावप्रधान शैली छलक रही है। कई स्थानों पर द्विवेदीजी ने अलंकार-योजना द्वारा भावात्मकता को सहारा दिया है। जैसे : ___ "सब तरह के भावों को प्रकट करने की योग्यता रखनेवाली और निर्दोष होने पर भी यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नही रखती, तो वह रूपवती भिखारिणी की तरह कदापि आदरणीय नहीं हो सकती। अपनी माँ को असहाय, निरुपाय और निर्धन दशा मे छोड़कर जो मनुष्य दूसरे की माँ की सेवा-शुश्रूषा में रत होता है, उस अधम की कृतघ्नता का क्या प्रायश्चित्त होना चाहिए, इसका निर्णय तो कोई मनु, याज्ञवल्क्य या आपस्तम्ब ही कर सकता है ।"3 इस प्रकार, भावप्रधान शैली भी द्विवेदीजी की एक प्रतिनिधि शैली कही जा सकती है । गम्भीर-से-गम्भीर एवं साधारण-से-साधारण विषय की विवेचना के प्रसंग १: डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० २६२ । २. आचार्य महावीरप्रमाद द्विवेदी : 'साहित्य-समुच्चय', पृ० ६७।। ३. 'हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के कानपुर-अधिवेशन में स्वागताध्यक्ष के पद से दिया गया भाषण', पृ० १९ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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