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________________ १२८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व तो द्विवेदीजी की व्यंग्यात्मक शैली का मूल स्वर आलोचनात्मक ही प्रतीत होता है। इस दृष्टि से व्यंग्यात्मक शैली को आलोचनात्मक शैली से अभिन्न पाते हैं। आचार्य द्विवेदीजी की आलोचनात्मक गद्यशैली अपने-आप में एक विशिष्ट लेखनशैली थी। इस दिशा में उनकी शैली प्रधानत: व्यासात्मक-सरल है। कही आदेशपूर्ण, कहीं ओजपूर्ण और कहीं विवेचनात्मक ढंग से द्विवेदीजी ने अपनी आलोचनात्मक शैली को मरलता तथा व्यामात्मकता के आवरण में प्रस्तुत किया है। उनकी इस शैली के सम्बन्ध में श्रीकमलेश्वरप्रसाद भट्ट ने लिखा है : "आलोचनात्मक रचनाओं में द्विवेदीजी ने जिसशैली को अपनाया है, उसमें सरलता के साथ गाम्भीर्य और प्रौढता है। वह शिष्ट संयत भाषा से युक्त है। उनकी शैली कहीं-कहीं व्यंग्यात्मक भी हो गई है।" __आलोचना के प्रसंग मे अपने समकालीन साहित्य का दिशा-निर्देश करने के उद्देश्य से जैसी भाषाशैली का प्रयोग द्विवेदीजी ने किया है, उसमें युगनेता के अनुरूप आदेशात्मक ध्वनि मिलती है । यथा : "कृच्छ-साध्यजनों को चाहिए कि कालिदास आदि सत्कवियों के सारे प्रबन्धों को आद्यन्त पढ़ें और खूब विचारपूर्वक पढ़ें। इतिहासों का भी अध्ययन करें। ताकिकों की उग्र सन्धि से दूर ही रहें । कविता के मधुर सौरभ को उससे नष्ट होने से बचाते रहें। अभ्यास के लिए कोई नया पद्य लिखें, तो महाकवियों की शैली को सदा ध्यान में रखें।"२ भूले हुए साहित्य-पथिकों को उचित मार्ग दिखाने की इस शैली ने द्विवेदीजी की गद्य-रचनाओं को एक उपदेशक या शिक्षक की कृति का बाना पहना दिया है। परन्तु, उनकी आलोचनात्मक शैली सर्वत्र इतनी ही सरल एवं शिक्षाप्रद नहीं है । विषय के गाम्भीर्य के अनुरूप शैली को भी गम्भीर बना डालने की कला में द्विवेदीजी कुशल थे। यथा : "कर्तव्य-ज्ञान न होने अथवा कर्तव्य-कर्म का सम्पादन न करने से मनुष्य को अनेक दु ख और कष्ट सहने पड़ते है । देश, समाज और साहित्य का ह्रास और हीनता भी प्रायः कर्त्तव्य-कर्म से पराङ मुख होने का ही फल है । कर्तव्य का पालन न करने से शरीर और आत्मा तक को नाना प्रकार की व्याधियों और जरा-मरण आदि दुखों से अभिभूत होना पड़ता है। परन्तु, आलोचनात्मक शैली के रूप में द्विवेदीजी की १. कमलेश्वरप्रसाद भट्ट : 'हिन्दी के प्रतिनिधि आलोचकों की गद्यशैलियां, पृ० ३४। २. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'रसजरंजन', पृ० ३५ । ३. आचार्य महवीरप्रसाद द्विवेदी : 'विचार-विमर्श', पृ० ३६ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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