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________________ ९४ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, (जुलाई, १९१५ ई०) में सम्पादको के लिए आवश्यक ज्ञान की अधोलिखित रूपरेखा प्रस्तुत की थी: " सम्पादक को इन शास्त्रो और इन विषयो का ज्ञान अवश्य होना चाहिएइतिहास, सम्पतिशास्त्र राष्ट्रविज्ञान, समाजतत्त्व, व्यवस्था विज्ञान ( Jurisprudence), अपराध-तत्त्व (Criminology ), अनेक लौकिक और वैषयिक व्यापारों का संख्या-सम्बन्धी शास्त्र (Statistics) और जनपद- वर्ग के अधिकार और कर्त्तव्य. अनेक देशों की शासन प्रणाली, शान्ति-रक्षा और स्वास्थ्य-रक्षा का विवरण, शिक्षापद्धति और कृषि वाणिज्य आदि का वृत्तान्त | देश का स्वास्थ्य किस तरह सुधर सकता है, कृषि, शिल्प और वाणिज्य की उन्नति कैसे हो सकती है. शिक्षा का विस्तार और उत्कर्ष साधन कैसे किया जा सकता है, किन उपायो के अवलम्बन से हम राष्ट्र-सम्बन्धी नाना प्रकार के अधिकार पा सकते है, सामाजिक कुरीतियों को किस प्रकार दूर कर सकते है इत्यादि अनेक विषयों पर सम्पादको को लेख लिखने चाहिए । १ 'सरस्वती' के यशस्वी सम्पादक के रूप मे द्विवेदीजी ने विषय - वैभिन्य की इस कसौटी पर अपनी प्रतिभा को खरा साबित किया है । 'सरस्वती' में विविध विषयो की समंजस योजना ही द्विवेदीजी की सम्पादन - कला का विशेष माधुर्य था । उन्होने ' अद्भुत और विचित्र विषयों के आकर्षण एवं आख्यायिका की सरसता, आध्यात्मिक विषयों की ज्ञान-सामग्री, ऐतिहासिक विषयो की राष्ट्रीयता, कविताओं की मनोहारिता और कान्ता - सम्मित उपदेशों, जीवनियों में वर्णित आदर्श चरित्रों, भौगोलिक विषयों में समाविष्ट देश - विदेश की ज्ञातव्य और मनोरंजक बातों, वैज्ञानिक विषयों में वर्णित विज्ञान के आविष्कारों और उनके महत्त्व की कथाओं, शिक्षा विषयो के अन्तर्गत देश की अवनत एवं विदेशो की उन्नत दिशा की समीक्षा, शिल्पादि - विषयक लेखों में भारत तथा अन्य देशों के कला - कौशल का निदर्शन, साहित्यिक विषयों में साहित्य के सिद्धान्तों, रचनाओं और रचनाकारों की समालोचनाओं, फुटकर विषयों में विविध प्रकार की व्यापक बातों की चर्चा, विनोद और आख्यायिका, हँसी- दिल्लगी, मनोरंजक श्लोकों की मनोरंजकता, चित्रों के उदाहरण और उनकी कला, व्यंग्य - चित्रों में साहित्यगत दुरवस्था का संकेत कर 'सरस्वती' को सर्वांगसुन्दर बनाने का प्रयत्न किया। उस समय की 'सरस्वती' मे विज्ञान के नये आविष्कारों, देश-विदेश की हलचलों, महत्त्वपूर्ण जीवनचरित, इतिहास- दर्शन आदि सभी विषयों पर रचनाएँ आने लगी थीं । द्विवेदीजी ने विविध विषयों के सामग्री-संचयन के सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण इन शब्दों में प्रकट किया है : १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'विचार-विमर्श', पृ० ४३-४४ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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