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इन रचनाओं के विल्प पर विचार करने पर वह स्पष्टता से कहा जा सकता है कि इनके नाम में जो कवियों ने वैविध्य प्रस्तुत किया है उसके मूल में अवश्य ही कोई दृष्टि विशेष होगी। वास्तव में गम्भीरता से अनुशीलन करने पर यह कहा आ सकता है कि इन रचनाओं के वर्णन के मूल में निश्चित परंपराएं (cycle ) बनी हुई है जिनका उद्भव प्राकृत से ही चला आता है। ही यह देखा गया है कि कहीं कहीं कवि ने वर्णनक्रम परंपराओं में नवीनता प्रस्तुत कर नई दवाओं की सृष्टि की है। यों तो प्रत्येक रचना के मूल में कथा और चरित हो रहता ही है और यदि उसमें सुसंबदध बला मूलक विचारधारा हुई, तो वह एक प्रबंध भी हो जाती है परन्तु एक ही चरित को लेकर जब उस पर विभिन्न रचनाएं लिखी जाती है तब उनमें कई परंपराओं का आधार होता है, कई नई परम्पराओं का सृजन होता है तथा कई अन्य मासिक अन्तर भी होते है उदाहरणार्थ महा उक्त रचनाओं के सामान्य अन्तर का स्पष्टीकरण किया जा सकता है। वर्णन के इन कप में भी एक निश्चित संक्रांति के दर्शन होते हैं। कई स्थानों पर तो वर्णन मैं मी विभिन्न पुराउन दृष्टियों को छोड़कर नई परंपराओंों को अपनाया गया है यह भी सम्भव है कि एक ही चरित नायक पर लिखी हुईदो रचनाओं का अलग नाम कर सामान्य जनता के लिए वरदान स्वस्य समते होगे। उस नय एक ही प्रकार की रचनाओं से अगवाधा को भी होती होगी। पहले उसमें बिस्वार चरित, कथा, त्या यात्व मादि सभी बीजों में नये वर्णनक्रम और परंपराओं की भायोजना मिल जाती है।
एक ही व्यक्ति पर किसी हुई विभिन्न रचनावों में विभिन्न परंपरा मे के बनने के लिए उक्त कृतियों पर में विचार किया जासकता है प्रबन्ध और efta काव्य में विस्तार भय समान होता है, दोनो काव्य ब्रेड काव्य है उपर उठकर नहा काव्य की सीमाओं का स्वई करते है परन्तु इनकी पटना और क्या परंपराओं में असर भी होता है। कवि का अभीष्ट
होता है उदाहरवाई नेमिनाथ का और नैमिश्वर चरित चरित नायक मानकर
गंध, नैनिनाथ विवाहलो आदि रचनाएं नैमिनाथ को