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________________ ९५० क्यों कि एक ही शलाका पुरुष को अनेक कवि अपने काव्य का विषय बनाते थे। अतः विषय में मौलिकता प्रस्तुत कर जन समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही कवि ने विस्तव घटनाओं का जवन न कर पेटी घटना और विभिन्न नाम को एतदर्थ चुना हो। इस तरह वर्णन के इसी क्रम में अनेक क्या परंपराएं धीरे धीरे बनती गई होगी। गे परंपराएं ( cycles ) केवल कथा के रूप में ही नहीं मिलती, वर्णनाम और कला प भी होती है। वर्षन के इस अव्याहत म (arche order ) कथा के दरबों का दर्शन, रूद, विल्प, तथा सा की रैली में भी मिल जाता है। कई रचनाएं विषय प्रधान परंपराभों। (orales बनाने और परिवर्तित होने में योग देती है। कई खनाएं दो के क्षेत्र में विभिन्न under प्रस्तुत करती है जो कई बों तथा अली क्षेत्र में । क्था के क्षेत्र में घटनागों के कौतूहल मी इन स्थानों की परंपरागों का निर्माण करते है और यही कारण है कि एक ही नायक को आधार मान कर अनेक प्रकार की विविध रचनाएं मिल जाती है, जो क्या परंपराओं, वर्णन परंपराओं तथा अन्य कलात्मक परंपराओं में विभिन्न सोपान स्थापित करती रहती है। निस्संदेह भाविकालीन हिन्दी जैन साहित्य की न परंपराओं (yde . मध्ययन महत्वपूर्ण प्रबन्ध और बारित राज और गायु अतिरिका विभिन्न चरित नायकों पर लिपी ई अनेक समार-प्रबन्ध, पति और बहुम्यायिका ग मा क मिलती है। मेरमार मी या परंपरको कारण ही वैविध्य प्रस्तुत करती दारणा पररवर बाकी सब और परवर पाहुबली प्रबन्ध, मेमिनावरास, मेमिनाथ गति, पिनाय विवाको स्थानिय बढपड, पेरतेश्वर बाइबली भोर और परमपर गाली परित, और स्थमिद फागु- स्वामी रित, मंन्यापी विवाहो. मेमिनाथ ागु और नैमिावर बरित काशु मंथ, अभिमान और मेमिनाथ बारहमासा- आदि अनेक रचमानों को लिया जासकता है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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