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मी विभिन्न नामों में प्रस्तुत की गई है।इसी तरह जंबूस्वामी और स्थलिभर सम्बन्धी विभिन्न नाम सनक रचनाओं पर भी विचार किया जा सकता है।इन परिवर्तनों के मूल व वन परंपराएं और क्यानन्य मौलिकता तथा नबीमता अवश्य होती है। ये कवि परंपरा का निवास पी प्रम के साथ कसे है। उदाहरणार्थ जंबू स्वामी रास गेय रूपक है, तो चंद्र स्वामी कागु गैब ममासमीन, तथा स्थानी विवाहको एक विवाह सम्बन्धी क्या काम है। बदपि इस रक्षा कोई विशिष्टवैपिन्य परिलक्षित नहीं होता, तथापि विवाह कि भूलक वर्षों तथा परितमूलक परंपरामों का यथा सम्भव निवाड कवि ने प्रबलित परंपराओं के कारण ही किया है। विवाह के छोटे मोटे काव्य है, इनमें कवि दवाा प्रतिपादित घटना बाल्य नहीं होता, बरिख माभ्यान इनमें पूरा न होकर बत्कालीन प्रचालित हडियो प्रथा परम्परागों के आधार पर किया गया विवाह का संक्षिप्त वर्णन है।इसमें पारित और प्रबन्ध काव्यों का विस्तार नहीं होगा। साथ ही प्रत्येक कवि अपनी लेखन परंपरा को सात रना चाहता है. उस परंपरा का सम्यक निबाह उसका कर्तव्य है। मन:इन लेखन परंपराओं की सीमा
धामा भी बह विभिन्न नामों से गव्य पूजन कर जनता में लोक प्रियता उत्पन्न करता मोन करने के मूल मामी बाब सही होगी कि किस प्रगर समय रखना नारा माताकोबार परिस दोनों परिचय कराया जाना और यही कालकि स्वामी का रास, मंदस्वामी का का खामियाको क लर की गरी रमाओं परंपरा मान बिबादित करता है।
वामगार परिमानों का प्रश्न है इन नामों र पटवारा महीपति और प्रम दोनों ही एक ही पूलावोगाव था, काव्य, या पाषा जैली परंपरा
प न्न घटनाओं में अन्डर मिल पाता है। माणीकरभीम रमाओं मवीन परंपरा निर्मित दी । यो प्रबन्ध मूलक परित क्या लिखने की परम्परा को प्रायो
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