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मिलने लगती है परन्तु रचनाओं में मौलिक घटनाएं प्रस्तुत कर उन नई परंपरायों इवारा पुष्ट करना वन परंपरा में नया अध्यय जोड़ना है। मस्तु प्रय और परित काम क्या राम और फाय प्रथा विवाइलो भादि काव्यों में क्या सूत्र अन्यपरंपराए हो मिलती है परन्तु घटनामों की विविधता, ताड मूलक वर्णन म तथा मौलिक सूजन के लिए कहीं छद परिवर्तन कर देखा है तो कहीं
ठी गव परंपरानों की ओर बासर है। ताकि उनमें वर्णन कम में एक पिया पिटापन म रहकर मौलिकता ना जागा यह परंपरा वर्णन प्रथा क्या की प्राचीन और पिसी पिटी परंपरायों में एक आदोलन प्रस्तुत करती है।परन्तु इतना सब कुछ होते हुए भी बह वर्षन कम में प्राचीन परंपराओं का पूर्णतः निवाह भी करती है। अर्थात् कवि एक ही व्यक्ति पर तिसी अनेक रचनाओं के कारण बनी 'विभिन्न परंपरागों की उपेक्षा न कर उनका यथावत पालन करता है।
प्रबन्ध गीर परित काव्यों की प्राति की दलित और मैमिाथ पर बनेकों रचनाएं अलग अलग नामों लिभी मिल जाती है। कई नेमिनाथ के बारहमासे मिल जाते है और कई चरपई। इनके रमा क्रम में प्राचीन परंपराओं का बो अनुगमन ही परन्तु फिर भी नवीन नामकरण करने में बह कहा जा सा किवि प्राचीन परंपरा के होने पर भी बया व कहियों को होड़ कर नई परंपरागों और मागाडी की स्थापना, बासा मिनाथ मारामारी राजुल के विस कायमूनिका पकमारिक काव्य बारामारों या परंपरागों की, विरा वर्ष की मानों की मा बन्य घटनाओं की गम्भात्या न्यायाकि गिनाव सम्पकिा बाबा - रमा होमीर गारमा काव्य है। उसमें कोमल भावनाएं १, बिरा बन्य पटलावों का
बाग या भाव वंशिल्पजन्य घरम्बरमा नमकी कविसापी घोड़े में अधिक सारपूर्ण करने की प्राखामा परिचित होता है। मही कारण है कि विभिन्न मानों की बारिश पर जिनवाने वाली कृतियों की परंपरा मिली है। मारे परंपरा की ममय समय पर बनी रखनी है। इसमें कवि संक्षिप्त बया मोमियान में डालकर मना के उत्साह विस्मय किस लिस देता है परन्तु