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वास्तव में ये परंपराएं ही इनके मूल में होती है और यही कारण है कि एक की व्यक्ति पर अनेक नाम से यदि रमाएं लिखी जाय तो क्या परंपरागों में लेकर वर्णन, शिल्प, मंद पर्व मालिक्या सम्बन्धी अनेक परंपरायों का अजन हो जाता है या काव्य के लिए इन क्या परंपरागों का बड़ा महत्व होता है।
परवर्तीगाल में भी इन क्या परंपराओं का विकास सर्वत्र परिलक्षित होगा है। मध्य युगीन कवियों में उदाहरणार्थ जायसी, गुल्मी, मादि में न बैन साकारी की लामा इस प्रकार की अनेक जैन वर्णन परंपरागों का प्रभाव पड़ा है। जायसी की प्रेमास्थानकवा और क्यातत्व, तुलसी की प्रबन्धात्मकता, सूर का गीति काय आदि सभी मूल में बैन कवियों की इन क्या परम्पराओं वर्णन परंपराओं तथा शिप लीजन्य परंपराओं ने पळ भूमि के रूप में पर्याप्त सहायता की होगी। घटनाम, कुतूहल वस्तु बोजन, रस परिपाक सन्द और दिल्य जन्म अनेक प्रभाव दीवात्य के आधुनिक काल तक में भी देना है। इन
परंपरागों का यह तारतम्य प्राकत से लेकर आज तक अव्याहत रूपमें मिलता है।
4. काय कड़िया
काम कड़ियों का इस विर प्रारीम । संस्ख यों में र भाष, बापट्ट और क्या कहियों का वर्णन मिल पाना या परंपरागों की बाविस्था भी गय कागार प्रवाईन करती है। तुल्लाइष्टि गावास और उसके पूर्व विवादिकवि काव्य काव्य कहियों ने योगा पाय हो सका कि मही मिलता है। प्रा में इनका प्रबार जीरे धीरे का और अपच साहिल्यो इनकी परंपरा व पुष्ट
कायमा कड़ियों का वर्णन है। अपाच कालने की पर ीि नावों कीमों को पुष्ट किया है। उत्तर अपार
ना सहियों को अवस काल की कहि परंपरामों में तासि किया। म कदियों के निर्माण में ऐतिहासिक काव्यों ने बड़ा
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