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योग दिया है। आदिकाल के ऐतिहासिक कथाकाव्यों की चर्चा करते हुए डा. हजारी प्रसाद दिववेदी ने इन क्यानक ड़ियों पर सर्व प्रथम प्रकाश डाला है। इन क्यानक कड़ियों की परंपरा और उदेश्य के विषय में बतलाते हुए वे कहते हैभारतीय कवि इतिहास प्रसिद्ध पात्र को भी निगरी कथानकों की बाई तक है जाना चाहता है। इस कार्य के लिए वह कुछ ऐसी क्यानक कड़ियों का प्रयोग करता है यो क्यानक को अभिलषित ढंग से मोड़ देने के लिए दीर्घ काल में भारत की जिनधरी क्यानों स्वीकृत होते हुए आए है और कुल से विश्वासों का भाव लेवा है जो इस देश के पुराणों में और लोक कथाओं में दीर्घ काल मेले आहे है। इन स्थानक कड़ियों से काव्य में सरसता आती है और घटना प्रवाह में तोच मा जाती है। मध्यकाल में ये क्यानक इडिया बहुत लोकप्रिय हो गई थी और हमारे मातोशकाल में भी इनका प्रभाव बहुत व्यापक रहा।
बस्तु आदिकाल में जैन स्त्रोत में उपलब्ध इन रचनाओं में अनेक प्रकार की क्या कड़िया उपलब्ध होती है इनका विभाजन गावित ज्यों में किया जा सकता है:
बागा +- मावियप हिना ४. गत्पनिक कड़िया
बाबा कडिया का प्रारम्भ में ही देखी जासकती। माजी पर होने वाले ( ल. परस्वती वंदना अथवा जिनवंदन ( विक, कवि की gा और मात्वनिवेदन