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विसार की मूलरचना संस्कृत में हुई। रचनाकार राजकीर्ति मिश्र है जिन्होंने ०१४४९ में जाडिलपुर (पाटण) में इसकी रचना की। फिर राजस्थानी में इस पर टीका की गई। टीकाकार श्री श्रीधर है। प्रस्तुत रचना का विषय गणित के कुछ सिद्धान्तों के आधारपर कुछ सिक्कों का परिचय दिया गया है। साथ गूर्जर प्रदेश के बोलों और नामों के उपकरणों तथा उपादानों का भी महत्वपूर्ण विश्लेषण है उदाहरण वैविष:
किया ज परमेश्वर का विक्फ मंगल पार्वती हृदय रमनु विश्वनाथु । far विश्वनीय जाकि उसु नमस्कार करी | बालबोधनार्थ
are मनीति अज्ञान वीर भवबोध जाणिका अर्थ, अलीय बक्ष वृद्ध श्रीधराचा गणि प्रक्टीवृद्ध
इसी प्रकार एक उदाहरण गणित च विविका मालवबोध का देखा जा सकता वह रचना सं० १४७५ की है। मूल प्रति बीकानेर
वनाकार
ने इसके संस्कृत रूप की टीका प्रस्तुत की है साथ ही साथ बीच बीच में संस्कृत के श्लोक भी दे दिए है। इसमें दिनमास वर्षों, पर्वों आदि को जानने के आ art उनको निकालने के लिए विविध प्रकार की गणितविज्ञान की पद्धतियोंका after far गा :
मकर संक्राति थकी पस्न वा दिन पत्र की विमा कवई। मण्ड पमरस- इमीवर माँहि पाटील बाठ भीम बीजद दिन मान
खभइ ।
मारक इष्टि से देखने पर इन रचनावों की माया मैं भी retofee होता हैविविध विषयों के दानेवाली झरनाम मैं एक प्रसिध रचना बैनी लायबोध मिली है। महरचना अनेक नामों और पदार्थों का कोष में विविध नामों द्रयों और पद्मार्थी का बृहत् परिचम
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१०. यथा बीकानेर (स्वलिति विभाग)