SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 979
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ · रंगमते जे के जंवत इस्वी संभल बनते वर्णवी जे वंत, नदी ते जे नीरवंत, कटक ते जे वीरवंत, सरोवर ते जे कमलवंत, मेघ से सावंत, महात्मा ते जे बभावंत, प्रसाद जवंत वाटते जे सूथवंत, डाटते जे वस्तुत, घाट ते जे सुवत, भाटते जे वचनवंत मठ से जे मुनिर्वत, गढ़ते जे अभंग वंत देव ते जे अरागवंत, गुरु से जे क्रियावंत वचन हे जे सत्यवंत, विषय ते जे विनययंत मनुष्य से जे धर्मवंत, जातिवंत, प्रधान बुधवंत करते जयवंत, रायते जे न्यायवंद, व्यवहारीय ते जे भयावंत, धर्माते जे व्यावंत । इस प्रवाह वचनिका बैली का as निर्वाह उत्तर उद्धरण में परिलक्षित होता है। पृथ्वीचन्द्र दरित की पैली समास बहुला है। ऐसा प्रतीत होता है मानो रचनाकार के हृदय में अब्यस ठूस कर भरे हों । शब्दों के निर्कर को बस वर्णन प्रवाह के लिए अवसर मात्र चाहिए। समास प्रधान अभिव्यक्ति का एक उदाहरण देखिए:बीर किस ते वृषभ, निर्गुत धारा घरचवल, विकसित का समुज्जवल, विशाल कुमुद, बन्दकिरण राणी परिविशद सूक्ष्म सुकुमाल रोमराज विराजमान, स्निग्ध कांति देदीप्यमान, अमंगश्यामलांग सुन्दर समस्त अंगोपांग विद्युदुवत- पंक्ति शोभित, प्रमुख प्रदेश, वावरण संनिवेश ।-कम सिंह पार, मनावर क्वोत्कफ कुमाव ब्रा, बाइलामि भारत बिया बिमिक प्रथाविस्टीन वटा रक्तोष्ठ, डीप वाला विवि शरीरमेय, प्रवर पीवर प्रकोष्ट, कमल . कार वयन, पराक्रम पत्रि प्रत्येक गर्भ में भी कवि की उपदेशात अनुभव ज्ञान तथा विवेक की हाथ लगी हुई है।मंजरी का मंडप में विमान होना कवि की अनुभूति में निविश उदाहरणों का नवमेव करता है। वर्णन की प्रासादिकता उल्लेली है: रत्नमेव पावा मिली दीदिवालामा जिम लवण ही न रमवती, म्यानहीन हरस्वती बरडित वन, जडित भोजन, सीड रहित पक्वान गावरान, रवि कवि, उरहित पवि, विवेद रहित गए वेद रहित १- प्राचीन काव्य० १०९ १० वहीं, पू० ११९४
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy